पृष्ठ:दासबोध.pdf/२४६

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समास 10] अनुभव अकथनीय है। रहने से परमात्मा मिलता है ॥२०॥ सजनों को परमात्मा मिलता है, दुष्टों को दुर्गति मिलती है और विचारवान पुरुष को विचार प्राप्त होता है ॥ २१ ॥ सम्पूर्ण दृश्य अशाश्वत है और परमात्मा, जो अच्युत तथा अनन्त है, इस दृश्य से अलग है ॥ २२ ॥ वह सर्वात्मा दृश्य से अलग भी है और दृश्य के भीतर भी है-सव चराचर में है-और विवेक से वह अ- नुभव में आता है ॥ २३ ॥ संसार-त्याग न करते हुए और प्रपंच-उपाधि न छोड़ते हुए, केवल विचार ही से, जीवन सार्थक हो सकता है ! ॥ २४॥ यह अनुभवसिद्ध बात है। विवेक द्वारा इसका अनुभव करना चाहिए। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अनुभवो पुरुष ही चतुर हो सकते हैं ॥ २५ ॥ अनुभव और अनुमान, उधार और नकद, अथवा मानसपूजा और प्रत्यक्ष दर्शन-इनमें बड़ा अन्तर है ॥ २६ ॥ अगले जन्म में, सत्कर्मों का फल, मि- लने को बाल, उधार का विषय है; परन्तु सारासार के विचार का फल (मुकि) तत्काल हो (इसो जन्म में) मिलता है ॥ २७ ॥ सार और अ- सार का विवेक करने से तत्काल ही लाभ होता है-मनुप्य संसार से छूट जाता है-और जन्म-मरण का सारा संशय मिट जाता है ॥ २८ ॥ विवेक के द्वारा इस जन्म में-इसी काल में-संसार से अलग हो सकते हैं और, निश्चल स्वरूपाकार होकर, मोक्ष पा सकते हैं ! ॥ २६ ॥ इस बात में जो सन्देह करेगा वह, चाहे फिर सिद्ध ही क्यों न हो, अवश्य अधोगति पा- वेगा! जो झूट कहता हो, उसे उपासना की शपथ है !!॥३०॥ यह कथन यथार्थ ही है । विवेक से तुरन्त ही मुक्त हो सकते हैं। और, संसार में रह कर भी, उससे अलिप्त रह सकते है॥ ३१ ॥ इस बात का विचार करने से पूर्ण शान्ति मिल सकती है, कि निर्गुण परमात्मा कैसा है और उसमें अनन्य कैसे हो सकते हैं ॥ ३२ ॥ देह में रह कर ही विदेह होना और करके भी कुछ न करना ये जीवन्मुकों के लक्षण जीवन्मुक्त ही जानते है ! ॥ ३३ ॥ यों तो यह बात सच्ची नहीं जान पड़ती, इसमें सन्देह होता है, परन्तु सद्गुरु के वचनों से वह सन्देह समूल मिट जाता है ॥ ३४ ॥ दसवाँ समास-अनुभव अकथनीय है। ।। श्रीराम ॥ अनुभव की बात पूछने पर लोग कहते हैं कि वह अकथनीय है । अतएव, आप इसका सब हाल बतलाइये ॥१॥ जिस प्रकार