पृष्ठ:दासबोध.pdf/२४९

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दासबोध । [ दशक ६ का नाम नहीं है ॥३५॥ उदाहरणः-कोई अजन्मा (स्वप्नावस्था में) सोरहा था।वह स्वप्न में क्या स्वप्न देखता है कि मानो वह संसार-दुख के कारण सद्गुरु के शरण में जाता हैं ॥ ३६॥ सद्गुरु की उस पर कृपा होती है, उसका संसार-दुःख नाश होता है और उसे सद्गुरु की कृपा से ज्ञान होता है ॥ ३७ ॥ अतएव, वह जो कुछ था वह 'नहीं' के समान हो जाता है और जो नहीं है वह नहीं है ही; तथा है' और 'नहीं' दोनों के न रहने पर वह शून्यावस्था को प्राप्त होता है ! ॥ ३८ ॥ इसके वाद शुद्धज्ञान से, जो शून्यस्थिति से परे है, उसको परम शान्ति होती है और ऐक्यरूप से अभिन्नता, या सहज-स्थिति, प्राप्त होती है ॥ ३६॥ श्र- द्वैत-निरूपण होने से उसकी द्वैत की वार्ता मिट जाती है और वह ज्ञान- चर्चा करने लगता है। इतने ही में वह अजन्मा स्वप्न ही में जागृत हो जाता है ! ॥ ४० ॥ अब श्रोता लोग सावधान होकर अर्थ की तरफ ध्यान दें; क्योंकि इसका रहस्य मालूम होने पर समाधान होगा ॥४१॥ उस अजन्मा ने जितना ज्ञान कहा, उतना सब स्वभ के साथ चला गया और अनिर्वाच्य सुख, जो शब्द से परे है, अलग ही रहा ! ॥ ४२ ॥ उस शब्दातीत सुख के तई, शब्द के बिना ही, एकता है-वहां अनुभव और अनुभविता कोई नहीं है । परन्तु वह अजन्मा वहां तक न पहुँच कर जागृत हो उठा!॥४३॥ तात्पर्य, उसने स्वभ में स्वप्न देखा और स्वप्न ही में एकबार जागृत होकर फिर उसकी आंख खुल गई अर्थात् वह असली अवस्था तक नहीं पहुँच सका ! ॥ १४ ॥ अच्छा, श्रव इसी निरूपण को और भी स्पष्ट करके बतलाते हैं, जिससे समझ में आ जाय ॥ ४५ ॥ इस पर शिष्य कहता है कि, “महाराज! हां, इसे अवश्य फिर से समझाइये, ताकि असली बात समझ में आ जाय ॥ ४६-४७ ॥ यह ब- तलाइये कि, वह अजन्मा कौन है, उसने कैसा स्वप्न देखा और स्वप्न में उसने कौन सी बातें की"? ॥४८॥ महाराज उत्तर देते हैं किः हे शिष्य! अजन्मा तू ही है; तू स्वप्न में जो स्वप्न देखता है, वह भी अब बतलाता हूं ॥ ४६-५० ॥ यह संसार ही स्वप्न में स्वप्न है-यहां तू सार-प्रसार का विचार करता है ॥ ५१ ॥ सद्गुरु के शरण में जाकर, और शुद्ध निरूपण सुन कर, अब तू प्रत्यक्ष उसकी चर्चा करता है ॥५२॥ और उसी चर्चा का अनुभव मिलने पर सारा बोलना बन्द हो जाता है। यह शान्तियुक्त विश्राम ही जागृति है ॥ ५३ ॥ ज्ञानचर्चा का गड़बड़ दूर हो जाने से प्रार्थ प्रकट होता है और उसका विचार करने से तुझे अनुभव प्राप्त होता है ॥ ५४ ॥ इस परतू तो समझता है कि, यही जागृति है और मुझे (शिष्य को) अनुभव