पृष्ठ:दासबोध.pdf/२६२

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समास ४ ४] केवल ब्रह्म। . चौथा समास-केवल ब्रह्म । ॥ श्रीराम ॥ ब्रह्म आकाश से भी अधिक निर्मल, निराकार, विशाल और व्यापक है ॥१॥ इक्कीस स्वर्ग और सात पाताल मिल कर एक ब्रह्मांड बना है- इस प्रकार के अनन्त ब्रह्मांडों में एक वही 'निर्मल ' व्याप्त है ॥२॥ अनन्त ब्रह्मांडों के नीचे-ऊपर, सब जगह, वह है-उसके बिना अणुमात्र भी जगह खाली नहीं है ॥ ३॥ यह तो सभी जानते हैं कि जल, स्थल, काष्ठ, पापाण, सव में वह है-ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जिसमें वह न हो ॥ ४॥ जिस प्रकार जल में जलचर रहते हैं उसी प्रकार ब्रह्म में सम्पूर्ण प्राणी रहते हैं ॥ ५॥ परन्तु ब्रह्म के लिए जल की उपमा ठीक नहीं है क्योंकि जल मर्यादित है-जल के बाहर रह भी सकते हैं; परन्तु ब्रह्म अमर्यादित है-उससे अलग होकर कोई रह ही नहीं सकता ॥६॥ यदि कोई आकाश के बाहर भगना चाहे तो कैसे भग सकता है-वह 'तो चारों ओर भरा हुआ है ! इसी तरह उस 'अनन्त का भी अन्त नहीं है॥७॥वह सब में अखंड रीति से मिला हुआ है-शरीरभर में लिपटा 'हुआ है ! सब के बहुत पास रह कर भी वह छिपा हुआ है ! ॥ ८॥ सब उसीमें रहते हैं; पर उसे जानते नहीं ! जो कुछ मालूम होता है वह भास है; वह परब्रह्म जाना नहीं जाता ॥ ६॥ बादल, धुआं, गर्द और कुहरा प्रादि से कभी कभी आकाश कुछ धुंधलासा मालूम होता है; परन्तु यह ठीक नहीं है-वास्तव में आकाश निर्मल ही है ! ॥ १०॥ आकाश की और जब हम बहुत देर तक देखते रहते हैं तब हमें चक्र की तरह कुछ दृश्य धूमते हुए दिखाई देते हैं, पर वास्तव में वह कुछ नहीं है-मिथ्या भास है ! इसी प्रकार यह दृश्य ( सृष्टि) भी ज्ञानियों को मिथ्या देख पड़ता है ॥ ११ ॥ जिस प्रकार सोनेवालों को अपना स्वप्न, जागृतावस्था में आ जाने पर, मिथ्या मालुम होने लगता है, उसी प्रकार ज्ञानरूप जागृति आ जाने पर, मनुष्य को यह सारा स्वप्नवत् 'दृश्य ' मिथ्या जान पड़ने लगता है ॥ १२॥ अतएव, अपने अनुभव से, ज्ञान द्वारा, जागृत होना चाहिए। इसके बाद स्वयं यह सब मायिक दृश्य मिथ्या मालूम होने लगता है ॥ १३ ॥ अच्छा, अब यह कूटक रहने दीजिए । जो ब्रह्मांड के परे है, वहीं अब स्पष्ट करके समझाये देता हूं:-॥ १४ ॥ ब्रह्म ब्रह्मांड में मिला हुआ है, पदार्थमात्र में व्याप्त है और अंशमात्र से