पृष्ठ:दासबोध.pdf/२७०

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समास ६] मुक कौन है? १८६ नहीं कर सकते ! ॥२८॥ परन्तु यदि वेदों में सामर्थ्य न होता तो फिर उन्हें कौन पूछता? इस लिए ऐसा नहीं हो सकता। वेदों में लोगों के उद्धार करने का सामर्थ्य जरूर है ॥२६॥ वेदाध्ययन करनेवाला पुरुष बड़ा पुण्यात्मा गिना जाता है वेदों में सामर्थ्य अवश्य है ॥ ३० ॥ साधु लोग कहते हैं, कि वेद, शास्त्र और पुराण बड़े भाग्य से सुनने को मिलते हैं और इनको सुन कर लोग पवित्र हो जाते हैं ॥ ३१ ॥ उनका एक श्लोक, प्राधा श्लोक, चौथाई श्लोक (एक चरण) अथवा एक शब्द तक, यदि कानों में पड़ जाय तो अनेक पाप दूर होते हैं॥३२॥ व्यास आदि महर्षियों के, ऐसे अनेक वचन, वेद-शास्त्र-पुराणों में, है ॥ ३३ ॥ जगह, जगह उपर्युत ग्रन्थों की महिमा गाई गई है और लिखा है कि, एक अक्षर भी सुन लेने से पवित्र हो जाते हैं ॥ ३४ ॥ अतएव, यदि शुकदेव और वास- देव को छोड़ कर अन्य लोगों का उद्धार न हुआ होता तो उक्त ग्रन्थों की महिमा कैसे रहती? ॥ ३५ ॥ अस्तु । यह सिद्ध है कि, वेद-शास्त्र- पुराणों के द्वारा सभी का उद्धार हुआ है ॥ ३६॥ अव, यदि तू कहेगा कि जो काठ की तरह, जड़ होकर, पड़ा रहे वहीं एक सुन समझा जा सकता है, तो यह भी ठीक नहीं क्योंकि स्वयं शुकदेव ने भी (जिन्हें तू मुक्त मानता है) अनेक जगह निरूपण किया है ! ॥ ३७ ॥ अस्तु । वेद का यह कथन, कि शुक मुक्त है, सर्वथा सत्य है; पर शुकदेव स्वामी कुछ अंचेतनं ब्रह्माकार नहीं थे ॥ ३८॥ यदि शुकदेव योगीश्वर अचेतन ब्रह्मा- कार होते तो फिर वे सारासार का विचार कैसे बतला सकते? ॥ ३६॥ तेरे कथनानुसार, ब्रह्माकार होनेवाला काट की तरह, जड़ वन कर, पड़ा रहता है; परन्तु शुकदेवजी ने तो राजा परीक्षित को भागवत सुनाई है।४०॥और कथा-निरूपण करने में तो सारासार का विचार करना पड़ता है तथा दृष्टान्त के लिए तमाम चराचर सृष्टि को ढूंढ़ना पड़ता है- ॥४१॥ क्षणभर के लिए ब्रह्म ही हो जाना पड़ता है और क्षणभर ही में सम्पूर्ण दृश्य सृष्टि को खोजना पड़ता है, तथा अनेक दृष्टान्त देकर वक्तृता का सम्पादन करना होता है ॥ ४२ ॥ और, इसी प्रकार से, शुकदेव ने भागवत आदि का निरूपण सुनाया है; परन्तु इससे क्या वे कभी बद्ध कहे जा सकते हैं ? ॥४३॥ अतएव, यह सिद्ध है, कि सद्गुरु के उपदेश से, सब कर्म करते निश्चेष्ट, काठ की तरह, न पड़े रहते हुए सायुज्य मुक्ति मिलती है। इस संसार में कोई मुक्त, कोई नित्यसुक्ता, कोई जीवन्मुक और कोई समा- धानी योगी विदेहमुक्त होते हैं ॥ ४५ ॥ जो सचेतन हैं वे जीवन्मुक्त है-