पृष्ठ:दासबोध.pdf/२७७

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१९६ दासबोध। [दशक ७ इस ब्रह्म की पूर्णस्थिति को, आलस्य के कारण, अपने ऊपर लगा लेता है; और स्वयं अपने हाथ से अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मारता है ! ॥६॥ तथा, उपाय के बदले, अपाय कर बैठता है, अपने सच्चे हित से वञ्चित रहता है और मुझपन के बहाने से और भी बद्ध हो जाता ऐसे लोग समझते हैं कि साधन करते ही हमारा सिद्धपन चला जायगा; ' इस कारण उन्हें साधन करना अच्छा ही नहीं लगता ! ॥ ७० ॥ एक तो उन्हें यत्ती लाज लगती है कि हमें लोग 'साधक' कहते हैं; परन्तु उन्हें यह नहीं मालूम है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि देवता भी साधन करते हैं ॥ ७१ ॥ श्रस्तु । अब ये अविद्या की वाते रहने दो । विद्या अभ्यास-सारिणी है-(अर्थात् वह उतनी ही प्राप्त होगी जितना अभ्यास किया जायगा।) अभ्यास से श्राद्य, पूर्ण ब्रह्म मिलता है ॥ ७२ ॥ इस पर श्रोता प्रश्न करता है कि कौनसा अभ्यास करना चाहिए और परमार्थ का साधन कौन है ? ॥ ७३ ॥ इसका उत्तर अगले समास में दिया है और परमार्थ का साधन भी बतलाया है॥७४॥ आठवाँ समास-श्रवण-महिमा। ॥ श्रीराम ।। परमार्थ का मुख्य समाधान-कारक साधन श्रवण है ॥ १॥ श्रवण से भक्ति मिलती है विरति उत्पन्न होती है और विषयों की श्रासचि टूटती है ॥२॥ श्रवण से चित्तशुद्धि होती है, बुद्धि दृढ़ होती है.और. अभिमान की उपाधि टूटती है ॥ ३ ॥ श्रवणं से निश्चय प्राता है, समता टूटती है और अन्तःकरण में समाधान होता है ॥ ४ ॥ श्रवण से अशंका मिटती है; संशय टूटता है और सद्गुण आते हैं ॥ ५॥ श्रवण से मनो- निग्रह होता है, समाधान मिलता है और देहबुद्धि का बन्धन टूटता है ॥६॥ श्रवण से मैंपन दूर होता है; सन्देह नहीं पाता और अनेक प्रकार के विघ्न भस्म होते हैं ॥ ७॥ श्रवण से कार्यसिद्धि होती है; समाधि लगती है और पूर्ण परम-शान्ति प्राप्त होती है ॥ ८ ॥ सन्तसमागम करके अध्यात्म-श्रवण करने से वृन्ति तल्लीन हो जाती है ॥ ६॥ श्रवण से प्रबोध बढ़ता है; प्रज्ञा प्रबल होती है और विपयों के.. पाश टूट जाते हैं ॥ १० ॥ श्रवण से विवेक आता है; ज्ञान प्रबल होता