पृष्ठ:दासबोध.pdf/२७९

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दासबोध। [दशक ७ . करते हैं ॥ ३२ ॥ और फिर, इसके बाद, जहां श्रवण से बोध प्राप्त हुआ, कि बस, वे साधक ही फिर सिद्ध हो जाते हैं ॥ ३३ ॥ श्रवण का ऐसा तात्कालिक गुण है कि, महा दुष्ट और चांडाल भी पुण्यशील हो जाते हैं ॥ ३४ ॥ जो दुर्बुद्धि और दुरात्मा है, वह भी, श्रवण के योग से, पुण्यात्मा हो जाता है-श्रवण की महिमा अगाध है, वर्णन नहीं की जा सकती ॥ ३५॥ कहते हैं कि, तीर्थों और व्रतों का फल आगे मिलेगा; पर श्रवण का यह हाल नहीं है-उसका फल तत्काल मिलता है !॥३६॥ जैसे अनेक रोग और व्याधियां श्रोषधि से तत्काल नाश हो जाती हैं उसी प्रकार श्रवण के द्वारा शीघ्र ही अन्तःकरण शुद्ध होता है। यह वात अनुभवी जानते हैं ॥ ३७ ॥ जव श्रवण किये हुए विषय का अर्थ मालूम होता है तव श्राप ही श्राप भाग्यश्री प्रगट होती है और मुख्य परमात्मा स्वानुभव में श्रा जाता है ॥ ३८ ॥ यह मनन का फल है; क्योंकि जब श्रवण करते समय अर्थ समझने में सावधानी रखी जाती है तब पीछे से मनन के द्वारा निदिध्यास लगता है और उसके बाद परम शान्ति प्राप्त होती है ॥ ३६॥ जो कुछ बतलाया जाता है उसका जब अर्थ भी मालूम होता है तभी समाधान मिलता है, और तभी मन का संशय मिटता है ॥ ४०॥ यह संदेह ही जन्म का मूल है; परन्तु श्रवण से वह समूल नष्ट हो जाता है और फिर सहज ही सत्य समाधान (परमशान्ति ) मिलता है ॥ ४१ ॥ जो श्रवण और मनन नहीं करता उसे समाधान कैसे प्राप्त हो सकता है ? उसके पैरों में मुक्त- पन के अभिमान की बेड़ियां पड़ी रहती हैं ॥ ४२ ॥ मुमुक्षु, साधक अथवा सिद्ध, कोई भी हो, वह बिना श्रवण के अव्यवस्थित ही है क्योंकि श्रवण-मनन से चित्तवृत्ति शुद्ध होती है॥४३॥जहां नित्य, नियम के साथ, श्रवण का साधन नहीं हो सकता, वहीं साधंकों को, एक क्षणभर भी, न रहना चाहिए ॥४४॥ जो श्रवण का साधन नहीं करता वह परमार्थ कैसे पा सकता है ? श्रवण के बिना पिछला किया-धरा सब व्यर्थ हो जाता है ॥ ४५ ॥ इंस लिए श्रवण करना चाहिए, इस साधन लगाना चाहिए और नित्य-नियमों का पालन करके संसार-सागर से पार होना चाहिए ॥४६॥ जिस प्रकार एक ही अन्न-जल बार बार (भूक लगने पर ) ग्रहण करते हैं, उसी प्रकार एक ही श्रवण-मनन भी बार बार करना चाहिए, इससे सन्देह मिटता है ॥ ४७ ॥ जो मनुष्य, आलस्य के. कारण, श्रवण का अनादर करता है उसके स्वहित की अवश्य हानि होती है ॥४८॥ आलस्य की रक्षा करना मानो परमार्थ को डुबाना है; इस मन