पृष्ठ:दासबोध.pdf/२८५

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२०४ दासबोध। [ दशक ७ नहीं और बोये बिना उगता नहीं" ! ॥२०॥ जैसे हरामखोर भादसी महीने भर नौकरी का काम न करके मालिक से तनखाह चाहता हो उसी प्रकार अभक्ता मनुष्य, जन्म भर ईश्वर की भक्तिन करके ही, अन्त में मोक्ष चाहता है । ॥ २१ ॥ यदि जीते जी भगवान् की भक्ति नहीं की हैं तो मरे पर मुक्ति कैसे हो सकती है ? अस्तु; जो जैसा करता हैं वहं वैसा पाता है ॥ २२ ॥ एवं, जन्म भर भगवान् का भजन न करने से अंत में मुक्ति नहीं हो सकती । मृत्यु चाहे जितनी अच्छी श्रावे; परन्तु भक्ति के बिना अवश्य अधोगति होती है ॥ २३ ॥ इस लिए, साधु जनों को धन्य है, जो जीते जी ही अपना जीवन सार्थक कर लेते हैं ॥ २४ ॥ ऐसें जीवन्मुक्ता ज्ञानियों का चाहे वन में शरीरपात हो; चाहे स्मशान में, वे धन्य ही हैं ॥ २५ ॥ यदि साधू की देह पड़ी रहीं, अथवा उसे कुत्तों आदि ने खा लिया, तो यह, लोगों को, मंदबुद्धि के कारण, अच्छा नहीं जान पड़ता ॥ २६ ॥ ये लोग प्रायः इसी लिए दुखी होते हैं, कि अंत अच्छा नहीं हुआ । पर क्या करें विचारे मर्म ही नहीं जानते ! ॥२७॥ जो वास्तव में जन्मा ही नहीं उसे मृत्यु कहां से आवेगी ? उसने तो विवेकवल से स्वयं जन्ममृत्यु ही को घोट डाला है ! ॥ २८ ॥ स्वरूपानु- सन्धान के कारण उसके तई साया तो रहती ही नहीं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदि भी उसकी गति नहीं जान सकते ॥ २६ ॥ वह जीते जी ही मरा हुआ है और मृत्यु को भी मार कर जी रहा है ! विवेकबल से उसे जन्ममृत्यु की याद भी नहीं ॥ ३०॥ वह, किसी मनुष्य की तरह, देख पड़ता है; पर है वह कुछ और ही! वह लोगों में वर्ताव करता हुआ सा भासता है; पर है वह वास्तव में उनसे अलिप्त ! यहां तक कि उस शुद्ध स्वरूप में दृश्य' पदार्थ का स्पर्श भी नहीं है ॥ ३१ ॥ अस्तु । ऐले साधुओं की लेवा करने से सभी लोग मुक्त हो सकते हैं ॥ ३२ ॥ . सद्गुरु के कृपापात्र साधक को चाहिए कि, एक बार किया हुआ विवेक ही, फिर से वारम्वार करे। ऐसा करने से अध्यात्म-निरूपणं से उसकी बुद्धि प्रविष्ट होती है ॥ ३३॥. अब, अन्त में साधकों को यही बतलाना है कि, शुद्ध अद्वैत निरूपण से तुम्हें भी वैसा ही समाधान होगा जैसा कि किसी साधु पुरुष को होता है ॥ ३४ ॥ जो संतों के शरण मैं जाता है वह सन्त ही हो जाता है।ौर, अंपनी कृपा से, वह अन्य लोगों को भी तारता है ॥ ३५॥ संतों की महिमा बड़ी विचित्र है। संतसंग से ज्ञान प्राप्त होता है। सत्संग के समान दूसरा कोई साधन नहीं है ॥३६॥ गुरु की सेवा से, और अध्यात्म-निरूपण के मनन से, मनुष्य का