पृष्ठ:दासबोध.pdf/२९१

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२१० दासबोध। [ दशक ८ उसका उत्तरः-॥१॥ सनातन ब्रह्म मै माया, वास्तव में न होकर, इस प्रकार अध्यासरूप भासती है जैसे शुक्ति में रजत और डोरी में सर्प भासता ॥२॥ आदि में, एक नित्यमुक्त और परम अक्रिय, परब्रह्म ही है। उसमें अव्याकृत (अस्पष्ट ) और सूक्ष्म मूल माया हुई ॥ ३ ॥ आयमेकं परब्रह्म नित्यमुक्तमविक्रियम् । तस्य माया समावेशो जीवमव्याकृतात्मकम् ॥ १॥ आशंकाः-अच्छा, यदि ब्रह्म एक, निराकार, मुक्त, अक्रिय और निर्विकार है तो फिर उसमें मिथ्या माया कहां से हुई? ॥४॥ ब्रह्म अखंड निर्गुण है-उससे इच्छा कहां से आवेगी ? क्योंकि इच्छा सगुण ही में हो सकती है-निर्गुण में वह नहीं हो सकती ॥ ५ ॥ और, वह तो आदि से ही सगुण नहीं है, तथा इसी लिए उसका 'निर्गुण' नाम पड़ा है। तव फिर उसमें सगुणत्व, अर्थात् इच्छाशक्ति, कहां से आई ? ॥ ६ ॥ अच्छा, यदि यह कहा जाय कि, निर्गुण ही सगुण होगया, तो ऐसा कहने से सूर्खता प्रकट होती है ॥ ७ ॥ कोई कहता है कि वह निराकार ईश्वर, . करके भी, अकर्ता है-विचारे जीव उसकी लीला क्या जाने ? ॥८॥ कोई कहता है कि वह परमात्मा है; उसकी सहिमा, बिचारा जीवात्मा, कैसे जान सकता है ! ॥ ६॥ शास्त्रों का अर्थ छिपा कर न्यर्थ ही के लिए महिमा गाते हैं और निर्गुण पर जबरदस्ती कर्तृत्व लादते हैं! ॥१०॥ जब कर्तव्यता बिलकुल है ही नहीं, तब करके भी अकर्ता कौन है ? कर्ता और अकर्ता की वार्ता ही समूल मिथ्या है ! ॥ ११ ॥ जो आदि से ही निर्गुण है उसमें कर्तापन कहां से आया? (अच्छा यदि कर्तापन नहीं आया ) तो फिर यह सृष्टि रचने की इच्छा कौन करता है ? ॥१२॥ यह तो बहुत लोग कहते हैं कि “परमेश्वर की इच्छा "-पर यह नहीं जान पड़ता कि उस निर्गुण में 'इच्छा' कहां से आई। ॥ १३ ॥ तो फिर यह इतना किसने रचा? अथवा आप ही होगया! ईश्वर के बिना इन सब, को उत्पन्न किसने किया? ॥ १४॥ यदि कहा जाय कि विना ईश्वर के ही सब होगया तो फिर ईश्वर कहां जायगा? इससे तो ईश्वर का प्रभाव देख पड़ता है ॥ १५ ॥ यदि ईश्वर को सृष्टिकर्ता कहे तो फिर उसमें सगुणता : होना चाहिए; इससे तो ईश्वर की निर्गुणता की वार्ता ही समाप्त होती है ॥ १६॥ यदि ईश्वर आदि से निर्गुण है तो फिर दृष्टिकर्ता कौन है. ? यदि ईश्वर को कर्ता कहते है तो उसमें सगुणता आती है और सगुणता. नश्वर है॥१७॥यहां बड़ी शंका आती है-यह चराचर जगत् हुआ तो कैसे?