पृष्ठ:दासबोध.pdf/२९२

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समास २] माया के अस्तित्व में शंका । यदि माया को स्वतंत्र कहे तो भी विपरीत देख पड़ता है ॥ १८॥ यदि कहें कि माया को किसीने नहीं बनाया-यह श्राप ही से फैल गई-तो इससे ईश्वर की वार्ता ही डूबी जाती है ॥१६॥यह कहना भी उचित नहीं देख पड़ता कि, ईश्वर निर्गुण और स्वतःसिद्ध है; उससे और माया से कोई सम्बन्ध ही नहीं है ! ॥२०॥ अच्छा, यदि सारी कर्तव्यता माया के ही मत्थे लाई जाय तो फिर भत्तों का उद्धार करनेवाला ईश्वर क्या है ही नहीं ? ॥ २१ ॥ ईश्वर के बिना इस माया को कौन दूर करेगा? क्या हम, भा, लोगों को सँभालनेवाला कोई है ही नहीं ? |॥ २२ ॥ अतएव, माया को स्वतंत्र भी नहीं कह सकते-माया का निर्माणकर्ता वह एक सर्वेश्वर अवश्य ही है ॥ २३ ॥ तो फिर, यह अब विस्तारपूर्वक बतलाना चाहिए कि वह ईश्वर कैसा है और माया का विचार कैसा है ॥ २४ ॥ इस एक ही आशंका के विषय में लोगों के भिन्न भिन्न अनेक विचार हैं। वे सब क्रमशः बतलाये जाते हैं। ध्यान देकर सुनियेः-॥ २५ ॥ २६ ॥ कोई कहता है माया को ईश्वर ने ही बनाया है, इसीसे यह चारो ओर फैली हुई है । ईश्वर को यदि इच्छा न हुई होती तो यह माया कहां से आती ? ॥ २७ ॥ कोई कहता है; जब ईश्वर निर्गुण है तब इच्छा कौन करेगा? माया मिथ्या है यह बिलकुल हुई ही नहीं। ॥२८॥ कोई कहता है कि, जब यह प्रत्यक्ष देख पड़ती है, तब फिर यह कैसे कहते हो कि, वह है ही नहीं । माया ईश्वर की अनादि शक्ति है ॥२६॥ कोई कहता है कि यदि सच्ची है तो फिर यह ज्ञान द्वारा निरसन क्यों हो जाती है ? सघ के समान ही दिखती है; पर है यह मिथ्या! ॥ ३०॥ एक कहता है कि, यह जव स्वभाविक ही मिथ्या है तब फिर साधन क्यों करना चाहिए ? ईश्वर ने भक्ति का साधन, भायात्याग के लिए ही, बतलाया है ॥ ३१॥ कोई कहता है कि, वह है तो मिथ्या, परंतु अज्ञानरूपी सन्नि- पात से उसका भय मालूम होता है; इस लिये साधनरूपी श्रोपधि लेनी पड़ती है। परंतु, वस्तुतः वह दृश्य (माया) सिथ्या ही है ॥ ३२ ॥ एक कहता है कि, अनन्त साधन कहे गये हैं, नाना मत भटक रहे हैं; तब भी माया त्यागी नहीं जा सकती; फिर उसे मिथ्या कैसे कहें ? ॥ ३३ ॥ दूसरा उत्तर देता है। योगवाणी माया को मिथ्या बतला रही है, वेद- शास्त्र और पुराणों में भी उसे मिथ्या कहा है और नाना निरूपणों में भी माया मिथ्या ही कही गई है ! ॥३४॥ कोई कहता है कि ऐसा हमने कहीं नहीं सुना कि माया, मिथ्या कहने से, चली गई हो-मिथ्या कहते ही वह साथ में लगती है। ॥ ३५॥ कोई इसका उत्तर देता है। जिसके