पृष्ठ:दासबोध.pdf/२९४

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समास ३] निर्गुण में माया कैले हुई ? होने के कारण मूल आशंका रह गई । अच्छा, अब आगे वही, सार्व- धान होकर, सुनिये ॥ ५२ ॥ माया तो मिथ्या मालूम हो चुकी; पर वह ब्रह्म में कैसे हुई ? यदि कहा जाय कि, 'निर्गुण' ने बनाई है, तो फिर वह आदि से ही मिथ्या है!॥ ५३ ॥ मिथ्या शब्द से तो यह अर्थ निकलता है कि, वह कुछ है ही नहीं तो फिर बनाया क्या और किसने ? निर्गुण के तई कर्तृत्व होना भी अघटित ही बात है ! ॥ ५ ॥ एक तो, कर्ता, श्रादि से ही, अरूप है। दूसरे जो कुछ (माया) उसने बनाया उसका भी अस्तित्व नहीं! तथापि, श्रोताओं का आक्षेप दूर करेंगे ! ॥ ५५ ॥ तीसरा समास-निर्गुण में माया कैसे हुई ? S ॥ श्रीराम ॥ अरे, जो हुआ ही नहीं उसकी बात क्या कही जाय ? तथापि, संशय दूर करने के लिए, बतलाते हैं ॥ १॥ डोरी से सर्प, जल से लहर और सूर्य से मृगजल का भास होता है ॥२॥ कल्पना से स्वप्न देख पड़ता है, सिप्पी से चांदी भासती है और जल से ओला होता है ॥ ३ ॥ मिट्टी से दीवाल बनती है, समुद्र के कारण लहर आती है और आंख के तिल से दृश्य देख पड़ता है ॥२॥ सोने से अलंकार, तंतु से वस्त्र और कछुए के अस्तित्व से, उसके हाथ-पैरों का विस्तार होता है॥५॥धी है, तभी वह पिघलता है, खारे पानी से नमक निकलता है और विम्ब से प्रतिबिम्ब पड़ता है ॥६॥ पृथ्वी से वृक्ष होता है, वृक्ष से छायां होती है और धातु (वीर्य) से ऊंच-नीच वर्णों की उत्पत्ति होती है ॥ ७ ॥ अस्तु । अब ये दृष्टान्त बहुत हुए । अद्वैत में द्वैत कहां से आया और द्वैत के विना अद्वैत वतलाते क्यों नहीं बनता? ॥८॥ जब किसी वस्तु का भास है, तभी तो वह भासता है। और, दृश्य होता है तभी तो वह दिखता है; परन्तु, अदृश्य का यह हाल नहीं है; इसी लिए अदृश्य की कोई उपमा नहीं होती-वह अनुपम होता है ॥६॥ कल्पना के बिना हेतु, दृश्य के विना दृष्टान्त और द्वैत के बिना अद्वैत कैसे हो सकता है ? ॥ १०॥ जिस भगवंत की विचिन्न करनी शेष भी वर्णन नहीं कर सकता उसीने इस अनन्त ब्रह्मांड की रचना की है ॥.११ । उस परमात्मा, परमे-