पृष्ठ:दासबोध.pdf/२९९

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दालनोध। [ दशक ८ फिर, भागे चल कर, यही. सूक्ष्म.भूत सृष्टि के रूप में विस्तृत हुए-एवं, तमोगुण से पंचमहाभूत हुए ॥ ४॥ श्रोताओं ने पीछे जो यह आशंका उठाई कि जन मूलसाया गुणों से अलग है तब वहां भूत कहां से आये, इसका श्रव समाधान करते हैं ॥ ५॥ और साथ ही यह भी बतलाते हैं। कि एक एक भूत में पांचो पाँच भूत कैसे रहते हैं ॥ ६ ॥ सूक्ष्म दृष्टिं का कौतुक, और पंचभौतिक मूलमाया की स्थिति, सुनने के लिए अब श्रोताओं को अपना विवेक विमल कर रखना चाहिए ॥ ७॥ पहले पहल भूतों का रूप पहचानना चाहिए और फिर, सूक्ष्म दृष्टि से, उन्हें खोज कर देखना चाहिए ॥८॥ परन्तु जब तक किसी बात की पहचान न मालूम हो तब तक वह कैसे पहचानी जा सकती है, अतएव श्रोताओं को प्रथम पंचमहाभूतों की कुछ पहचान सुन लेना चाहिए ॥ ६॥ जितना कुछ जड़ और कठिन है वह पृथ्वी का लक्षण है; जितना कुछ मृदु और गीलापन है वह पानी है ॥ १०॥ जितना कुछ ऊष्ण और तेज- युत्तर है वह सब अग्नि है ॥ ११ ॥ जो कुछ चैतन्य और चंचल है वह सब केवल वायु है तथा जो कुछ शून्य, निश्चल और अवकाश देख पड़ता है वह सब आकाश है ॥ १२॥ यह तो पंचमहाभूतों की संक्षिप्त पहचान हुई । अब यह सूक्ष्म विचार बतलाते हैं कि एक एक भूत में पाँचो पाँच भूत कैसे पैठे हुए हैं और त्रिगुण से परे कौन है । इसे ध्यानपूर्वक सुनिये ॥ १३ ॥१४॥ अच्छा, अब पहले यह बतलाते हैं कि सूक्ष्म आकाश में पृथ्वी किस प्रकार घुसी है । श्रोता लोगों को यहां अपनी धारणाशक्ति स्थिर रखना चाहिए * ॥ १५॥ आकाश कहते हैं अवकाश को अवकाश कहते हैं शूल्य को; शून्य कहते हैं अज्ञान को; अज्ञान कहते हैं जड़ता को यही जड़ता, (आकाश में) पृथ्वी हुई ॥ १६ ॥ आकाश में जो मृदुता है वही 'आप' का लक्षण है, अतएव आकाश में जल अवश्य है ॥ १७॥ अज्ञान से आकाश में जो शून्यत्व का भास जान पड़ता है वह भास ही, 'तेज' .

  • यहां एक बात का बतला देना आवश्यक है, कि आगे, जव एक एक भूत में पांचो

भूतों का होन्त्र बतलाया जायगा, तव श्रोताओं को अपने पंचभूतात्मक देह में ही उसके मिश्रण को ध्यानपूर्वक देखना चाहिए-वाहरी, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी की जोर, ध्यान रख कर मिश्रण देखने से उतना स्पष्ट न जान पड़ेगा- जितना कि देह की ओर ध्यान रखने से।