पृष्ठ:दासबोध.pdf/३०

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प्रस्तावना। समर्थ का निर्याण। शाके १६०३ ( सन् १६८१) के रामनवमी उत्सव पर समर्थ चाफले को गये और वहाँ मन्दिर में अपने प्रिय उपास्य देव श्रीराम के दर्शन किये और हनुमानजी की आज्ञा लेकर, शिविकारुढ़ हो, सज्जनगढ़ को लौट आये। अन्तकाल समीप जान कर कई दिन पहले से उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया, केवल दूध पीकर रहने लगे। उस समय यद्यपि उनका तेज बढ़ता जाता था; तथापि शरीर-क्षीणता बढ़ती ही जाती थी। इस प्रकार कुछ दिनों के बाद माघ-कृष्ण-अष्टमी का दिन आ पहुँचा । उस दिन समर्थ की इच्छा हुई कि, अब इस बात की परीक्षा करना चाहिए कि, हमारे शिष्यों में से किसीको हमारा अन्तिम दिन मालूम है या नहीं । इसी विचार से उन्होंने अपने सब शिष्यों के सामने यह अर्थश्लोक पढ़ाः- रघुकुलतिलकाचा वेळ सन्नीध आला । तदुपरि भजनाने पाहिजे सांग केला ॥ रघुकुल-तिलक का समय निकट आ गया है, इस लिए अब सांगोपांग भजन करना चाहिए । यह सुन कर उद्धवस्वामी ने तुरंत ही उस श्लोक की पूर्ति इस प्रकार की:- अनुदिन नवमी हे मानस आठवावी । बहुत लगवगीने कार्य-सिद्धी करावी ॥ अन्तिम दिन नवमी का स्मरण रखना चाहिए और बड़ी शीघ्रता से कार्य-सिद्धि करनी चाहिए । यह श्लोकाध सुन कर समर्थ बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने सव भजन ( भक्ति-पद- गान) करने की आज्ञा दी । अष्टमी के दिन रात भर भजन की धूम मची रही । सब शिष्य जमा हुए । नवमी का दिन आया । उस दिन समर्थ स्वयं पलँग से नीचे उतर कर बैठ गये। उस समय उन्होंने, शिष्यों के बहुत आग्रह करने पर, कुछ मिश्री और दाख खाकर, थोड़ा सा निर्मल जल पान किया। थोड़ी देर के बाद शिष्यों ने पलंग पर बैठने के लिए उनसे प्रार्थना की। समर्थ ने कहा, मुझे, पलंग पर उठा कर, रक्खो।" यह आज्ञा पाकर उद्धवस्वामी उन्हें उठाने लगे; पर वे उनसे नहीं उठ सके । यह देख कर आकावाई नामक समर्थ की शिष्या भी उद्धवस्वामी के साथ उन्हें उठाने लगी, पर तब भी वे नहीं उठे। अन्त में करीब दस मनुष्य मिल कर उन्हें उठाने का प्रयत्न करने लगे पर विकल हुए। इसके चाद समर्थ ने सव के अलग होने की आज्ञा दी। लोगों के हटने पर जब वे वायु आकर्पण करने लगे तव सव शिष्य चिल्ला चिल्ला कर रोने लगे । समर्थ ने उन सब से कहा, “आज तक हमारे पास रह कर क्या रोना ही सीखे हो ?" शिष्यों ने कहा, सगुण मूर्ति जाती है; अव भजन किसके साथ करेंगे और बोलने की इच्छा होने पर, किससे वोलेंगे?" समर्थ ने अन्तिम उत्तर दिया, "जो मेरे पीछे मुझसे बोलना चाह वह CC