पृष्ठ:दासबोध.pdf/३०२

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समास ५] स्थल पंचमहाभूत। २२१ विष्णु-महेश का होना भी इसी तरफ की बात है; पृथ्वी, मेर, लप्तसागर सब इसी शोर के हैं (अर्थात् ये सब पीछे उद्धृत हुए हैं।) का ४६ ॥ अनेक लोक, नाना प्रकार के स्थान, चन्द्र, सूर्य, तारागरण सप्तद्वीप, चौदह भुवन-ये सब पीछे से हुए हैं ॥ ५० ॥ शेष, कर्म, सप्तपाताल इफ्रांस स्वर्ग, अष्टदिग्पाल और तेंतीस करोड़ देवता-धेसवपीछे की बातें हैं ॥ ५२ ॥ बारह सूर्य, ग्यारह रुद्र, नव नाग, सन ऋषि और नाना देवताओं के अवतार-सब पीछे से हुए हैं ॥ ५२ ॥ मेघ, चक्रवर्ती मनु और नाना प्रकार के जीवों की उत्पत्ति, इत्यादि बहुत विस्तार है। कहां तक बतलाया जाय-यह सब पीछे से हुआ है ॥ ५३ ॥ अर्थात् इस सम्पूर्ण विस्तृत ब्रह्मांड का मूल बही, पीछे बतलाई हुई, पंचभौतिक मूल- माया ही है ॥ ५४॥ जिन सूक्ष्म भूतों का वर्णन अभी किया, वही आगे चल कर जड़त्व था स्थूल रूप को प्राप्त हुए । उनका वर्णन अगले समास में, अलग अलग, विस्तृत रीति से किया गया है । श्रोता लोगों को उन पर पूर्ण विचार करना चाहिए ॥ ५५ ॥ ५६ ॥ इससे इस पंचभूतात्मक ब्रह्मांड का हाल अच्छी तरह मालम हो सकता है और उसके वाद. इस मिथ्या 'दृश्य' को छोड़ कर निराकार 'वस्तु' पा सकते हैं ॥५७ ॥ जैसे महाद्वार को पार करके देवदर्शन ले सकते हैं वैसे ही इस दृश्य का विवेक करके, इसे छोड़ कर, तब फिर परमात्मदर्शन पा सकते हैं ॥५॥ यह सम्पूर्ण दृश्य पंचभूतमय हो रहा है-दृश्य और पंचभूत एक दूसरे में लिपटे हुए हैं ॥ ५६ ॥ इस प्रकार यह सारी दृश्य सृष्टि पंचभूतों की ही बनी हुई है। इसका वर्णन आगे सुनिये ॥ ६०॥ पाँचवाँ समास-स्थूल पंचमहाभूत । ॥ श्रीराम ॥ प्रस्तुत विषय बहुत कठिनता से समझ में आता है। इसी लिए फिर स्पष्ट करके बतलाते हैं ॥ १॥ पंचभूतों का जो यह मिश्रण होंगया है वह कुछ अव अलग अलग नहीं हो सकता; तथापि कुछ स्पष्ट करके बतलाते हैं ॥२॥ नाना प्रकार के छोटे बड़े, पर्वत, पत्थर, शिला, शिखर, और कैकड़- पत्थर, इत्यादि, पृथ्वी है ॥३॥ अनेक स्थानों में जो नॉनी रंग की मिट्टी और बालू श्रादि है वह सब-पृथ्वी है।४॥ बड़े बड़े सुन्दर गावं; नगर, मन्दिर, महल; सप्तद्वीप, नवखण्ड तक, सब पृथ्वी ही है ॥ ५॥६॥.अनेक