पृष्ठ:दासबोध.pdf/३०३

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२२२ दासबोध। [दशक ८ देवता और नृपति बहुत भाषाओं के बोलनेवाले और नाना प्रकार की रीति-रवाजबाले, यहां तक कि चौरासी लाख योनियों के सम्पूर्ण जीव- जितने देहधारी हैं-सव पृथ्वी ही जानना चाहिए ॥ ७ ॥ अनेक वीरान जंगल, हरे भरे जंगल, गिरिकन्दर, इत्यादि नाना प्रकार के स्थान, सब पृथ्वी है॥८॥ अनेक प्राकृतिक स्थल, तथा नाना प्रकार के मनुष्यकृत स्थान, सव पृथ्वी है ॥ ६॥ सुवर्ण श्रादि अनेक धातु, नाना प्रकार के रत्न, बहुत तरह के वृक्ष, आदि काठ, सब पृथ्वी है ॥ १० ॥ सारांश, जितना कुछ जड़ और कठिन है वह सब निस्सन्देह पृथ्वी ही है ॥ ११ ॥ अस्तु । पृथ्वी का रूप तो, साधारण तौर पर, वतला दिया । श्रन 'आप' का भी लक्षण संक्षिप्त रीति से, सावधान होकर, सुनिये:-॥ १२ ॥ वापी, कूप, सरोवर, और सरिताओं का जल, मेघ और सप्तसागर-- यह सब मिल कर श्राप है ॥ १३ ॥ क्षारक्षीरसुरासर्पिर्दधिइक्षुर्जलं तथा । क्षारसमुद्र तो सब लोग प्रायः देखते ही हैं। उसीके जल से नमक बनता है ॥ १४ ॥ एक दूध का समुद्र है। उसे “ क्षीरसागर' कहते हैं। यह समुद्र भगवान् ने उपमन्यु को दिया है ॥ १५॥ इनके सिवाय मद्य, घृत, दधि, इक्षुरस और शुद्ध जल के भी समुद्र है । ये सातो समुद्र पृथ्वी को घेरे हुए हैं ! ॥ १६ ॥ १७ ॥ इस प्रकार जितना जल है वह सब नाप है ॥ १८ ॥ पृथ्वी के भीतर और पृथ्वी के ऊपर तथा तीनों लोक में जितना जल है वह सब आप है ॥ १६॥ अनेक प्रकार की बेलों और वृक्षों का रस, मधु, पारा, अमृत, विष, इत्यादि, सब आप है ॥ २० ॥ नाना प्रकार के रस; घी, तेल, इत्यादि चिकनाई; शुक्र, रक्ता, मूत्र, लार, स्वेद, श्लेष्मा, अक्षु, इत्यादि, जितना कुछ आर्द्र है, वह सब आप है ॥ २१-२४ ॥ अंच्छा, अब 'तेज' का लक्षण सुनिये-चन्द्र, सूर्य, तारागण, तेजस्वी दिव्य देह, इत्यादि 'तेज' के रूप हैं.॥ २५ ॥ साधारण अग्नि, बादल की विजली, प्रलयाग्नि, बड़वानल, रुद्राग्नि, कालाग्नि, भूगर्भाग्नि, आदि सब तेज है ॥ २६ ॥ २७ ॥ तात्पर्य, जितना कुछ तेजस्वी, प्रकाशित, उमण और प्रखर है वह सब तेज है ॥२८॥ वायु का मुख्य लक्षण चञ्चलता है । वह चैतन्यस्वरूप है । सव को चेतना देता है । हिलना-डुलना, बोलना चालना; इत्यादि, सृष्टि के बहुत