पृष्ठ:दासबोध.pdf/३०५

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२२४ दासबोध। [दशक : होते हैं; पर.पीतल को आग पर.तचाने से उसमें कालिमा आ जाती है ॥४८॥ अच्छा, अब ये हीन दृष्टान्त बस करो। आकाश केवल भूत है; सो वह.भूत और अनन्त (ब्रह्म) दोनों एक कैसे हो सकते हैं..॥ ४६॥ वस्तु ' में वर्ण ही नहीं है, और आकाश श्यामवर्ण है-तब फिर भला विचक्षणं पुरुष दोनों में समता कैसे कर सकते हैं ? ॥ ५० ॥ . इस पर श्रोता लोग कहते हैं कि "आकाश बिलकुल अरूप है-- आकाश वस्तु ही ' के रूप का है-भेद नहीं है ॥५१ ॥ चारो भूत नश्वर हैं, पर आकाश का नाश नहीं है । आकाश में वर्णव्यक्ति-और विकार नहीं है ॥५२॥ आकाश अचल दिखता है-उसका नाश, कहां देख पड़ता है। हमारी राय में तो आकाश शाश्वत है" ॥ ५३॥ ये वचन सुन कर वत्ता उत्तर देता है कि अच्छा, अब आकाश का लक्षण सुनिये:-॥५४॥ आकाश, तसोगुण से हुआ है, इस कारण वह कामक्रोध से चेष्टित है और अज्ञान या शून्यत्त्व उसका नाम है ॥ ५५ ॥ अज्ञान से काम, क्रोध, मोहा भय, और शोक आदि जो पैदा होते हैं वे सब आकाश ही के लक्षण हैं ॥ ५६ ॥ जिसका कुछ अस्तित्व नहीं है वही शून्य है.। इसी अर्थ में अज्ञान प्राणी को हृदयशून्य कहते हैं ॥ ५७.॥ आकाश स्तब्धता के कारण-शून्य है, और शून्य ही अज्ञान है; तथा अशान-ही जड़ता का रूप है॥ ५८:॥ जो कठिन, शून्य और विकारी है उसे शाश्वतस्वरूप कैसे कह सकते हैं --सिर्फ ऊपर ऊपर देखने में वह सत्स्वरूप के समान जान पड़ता है॥५६॥परन्तु भाकाश में अज्ञानामिला हुआ है। यह श्राकाश और अज्ञान का मिश्रण ज्ञान से नाश हो जाता है, अतएव आकाश नश्वर ही है ॥ ६० ॥ यद्यपि आकाश और ब्रह्मस्वरूप देखने में एकरूप सालूम होते हैं, पर दोनों में शून्यत्व का विक्षेप है-(श्राकाश और स्वरूप में इतना ही भेद है कि, आकाश में शून्यत्व है और स्वरूप में नहीं) ॥ ६१॥ ऊपर ऊपर, कल्पना से, देखने पर, दोनों एक ही समान अवश्य जान पड़ते हैं। पर वास्तव में आकाश और ब्रह्म में भेद है ॥ ६२ ॥ उन्मनी और सुषुप्ति अवस्था, वास्तव में एक ही सी जान पड़ती है; पर विवेक से देखने पर दोनों में भेद पाया जाता है ॥ ६३॥ खोटा प्रदार्थ खरे के समानःजान पड़ता है; पर परीक्षावंत लोग पहचान जाते हैं। हिंरने मृगजल को देख कर क्यों भूल जाते हैं ? इसी लिए तो कि, उन्हें खरे खोटे का ज्ञान नहीं है ॥ ६४॥ प्रस्तु, इन दृष्टान्तों से समझ सकते हैं कि आकाश-भूत और परमात्म- स्वरूपा दोनों एक नहीं हो सकते ॥ ६५ ॥ -आकाश से अलग रह कर