पृष्ठ:दासबोध.pdf/३०६

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समास ६] सत्त्लंग और मोक्ष। २२५ सर उसे देख सकते हैं। पर ब्रह्म को देखने के लिए. ब्रह्म ही बनता पड़ता है-' वस्तु' का देखना स्वभाव ही से ऐला है (अर्थात् जब तक 'बन्तु' ले तादात्य न होगा तब तक वह नहीं दिख सकती) ॥६६॥ इतने ले आशंका मिट जाती है, सन्देहवृत्ति अस्त हो जाती है। शस्तु ।

  • स्वरूपस्थिति भिन्नता से अनुभव में नहीं आ सकती ॥ ६७ ॥ श्राकाश

अनुभव में आता है, पर स्वरूप अनुभव से अलग-इस लिए श्राकाश से उसकी बरावरी नहीं हो सकती ॥ ६ ॥ दुग्ध के समान ही, उसमें मिला शुभा, जल का अंश जिस प्रकार राजहंस ही निकाल सकते हैं उसी ब्रह्म और आकाश का विचार संत पुरुप ही जानते हैं ।। ६६ । सम्पूर्ण माया का गाघा-जाल संत-संग से अच्छी तरह समझ लेना चाहिए । मोक्ष की पदवी संतसमागम से ही प्राप्त होती है ॥७० ॥ छठवाँ समास-सत्संग और मोक्ष । ॥ श्रीराम ॥ श्रोता वक्षा से विनयपूर्वक पूछता है कि, "कृपामूर्ति, मुझ दीन को यह बतलाइये कि सत्संग की क्या महिमा है और सन्तसमागम से मोक्ष कितने दिन में मिलता है ॥१॥२॥ उत्तरः-सन्तसमागम से मुकि तत्काल ही मिलती है; परन्तु साधु के उपदेश में विश्वास रखना चाहिए । दुश्चित्त रहने से हानि होती है ॥ ३॥ प्रश्नः-स्वस्थ दशा में भी सन कभी कभी अकस्मात् चंचल हो जाता है; उसे स्थिर कैसे करना चाहिए ? ॥ ४॥ उत्तर:-मन की चंचल गतियों को, विवेक से, रोक कर, सावधानी के साथ, साधुओं का उपदेश श्रवण करके, समय सार्थक करना चाहिए ॥५॥ जो कुछ श्रवण करे उसके अर्थ और प्रमेय (सिद्धान्त).को मन में विचारना चाहिए । मन यदि. चंचल होने लगे तो फिर श्रवण करना चाहिए ॥ ६ ॥ अर्थ के भीतर पैठे बिना, जो ऊपर ऊपर का ही श्रवण करता है वह श्रोता नहीं है-मनुप्यरूप पापाण '. (पत्थर.) है।॥७॥ यहां पर श्रोता लोग इस बात का खेद मानेंगे कि हमको पापाण बना डाला! अच्छा, श्रव सावधान होकर पाषाणं का लक्षण सुनिये:-11८॥ पत्थर यदि एक बार घड़ कर ठीक कर दिया जाता है तो फिर वह सदा वैसा ही बना रहता है। देखिये, टांकी से पत्थर का जो टुकड़ा फोड़ा