पृष्ठ:दासबोध.pdf/३०९

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२२८ दासबोध। [ दशक ८ नहीं सकते ॥४४॥ उसके लिए शिप्य की प्रज्ञा ही चाहिये; प्रज्ञावंत फो देर नहीं लगती-अनन्य को तत्काल मोक्ष मिलता है ॥ ४५ ॥ जो प्रज्ञावंत और अनन्य है-उसे मोक्ष पाने में एक क्षण भी नहीं लगता; परन्तु . अनल्य भाव जब तक न हो तब तक प्रज्ञा किसी काम की नहीं ॥ ४६॥ दिना प्रज्ञा अर्थ नहीं मालूम होता, और बिना विश्वास 'वस्तु ' का ज्ञान नहीं होता । प्रज्ञा और विश्वास से देहाभिमान छूट जाता है ॥४७॥ तथा, देहाभिमान छूट जाने पर सहज ही 'वस्तु' की प्राप्ति होती है। सत्संग से सत् गति मिलते देर ही नहीं लगती ॥ ४८ ॥ जो विशेष सावं- धान, उद्योगी, प्रज्ञावंत और विश्वासी है उसे साधन का परिश्रम करना ही नहीं पड़ता ॥ ४६॥ और जो उत्तम भाविक हैं उन्हें भी साधन से मोक्ष मिलता है। साधुसंग से तत्काल ही विवेकदृष्टि का विकास होता. है ॥ ५० ॥ तथापि अध्यात्म निरूपण के श्रवण का साधन अवश्य करना चाहिए, क्योंकि इस साधन से सब को लाभ होता है ॥ ५१ ॥

अब, आगे यह सब निरूपण अच्छी तरह से बतलाया गया है कि

मोक्ष कैसा है, स्वरूप की दशा कैसी है और सत्संग-द्वारा उसकी प्राप्ति का भरोसा पयों करना चाहिए । श्रोता लोग स्थिरचित्त होकर इस निरूपण की ओर ध्यान दें ॥ ५२ ॥ ५३ ॥ अवगुण छुड़ाने के लिए न्याय- निष्तुर (जो बात न्याय से निष्ठुर है) बोलना पड़ता है। श्रोता लोग, कृपा करके, ऐसे वचनों से अप्रसन्न न हो। ॥ ५४ ॥ सातवाँ समास-मोक्ष-लक्षण । ॥ श्रीराम ।। पीछे श्रोताओं ने जो यह प्रश्न किया था कि मोक्ष कितने दिन में होता है उसका उत्तर स्थिर चित्त से सुनिये ॥ १॥ इसके सिवाय यह भी बत- लाया जाता है कि, मोक्ष को कैसे जानना चाहिए,. मोक्ष कहते किसे हैं और संतसंग से मोक्ष कैसे मिलता है ॥२॥ बँधे हुए को बद्ध' कहते हैं और छूटे हुए, या मोक्ष पाये हुए, को 'मुक्त' कहते हैं। अस्तु । अब यह बतलाते हैं कि, सन्तसमागम से मोक्ष कैसे मिलता है ॥ ३॥ प्राणी संकल्प से बंधा होता है-जीवपन से बद्ध हुआ होता है-उसे विवेक से साधु जन मुक्त करते हैं ॥४॥ यह दृढ़ संकल्प कि “मैं जीव हूं," धारण किये .