पृष्ठ:दासबोध.pdf/३१

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२० दासबोध। ( ज्ञान, co " दासबोध " आदि हमारे अन्य पढ़े। उन्हें पढ़ना मानो प्रत्यक्ष मुझसे बातचीत करना इतना कह कर ग्यारह वार "हर हर " शब्द का उच्चारण किया और अन्त शब्द के उच्चारण करते ही समर्थ के मुख से तेज निकल कर, समीप स्थापित की हुई राममूर्ति के मुख में, प्रविष्ट हो गया ! भजन वरावर हो रहा था। उस समय भजन की ध्वनि और बढ़ गई। इस प्रकार शाके १६०३ ( सन् १६८२ ई० के फरवरी में ) माघ कृष्ण ९ के दिन ( संवत् १७३८ फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की नवमी को) महाराष्ट्र-प्रान्त का एकमात्र सिद्धरत्न, साधुराज, चातुर्यसागर, राजनीतिज्ञ-शिरोमणि, भक्ति- वैराग्य का प्रत्यक्ष स्वरूप और निस्पृह महात्मा 'राम' में लीन हो गया ! और 'दासबोध' में अनेक स्थानों में कहे हुए अपने इस वाक्य को अक्षरशः सत्य कर गया कि:- ...... । हरिभक्तीस सादर मरोन कीर्तीस उरवावें ।...... ॥१३॥ द०१२ स०२० सदा हरिभक्ति में तत्पर रहना चाहिए और मरने के बाद कीर्तिरूप से सदा जगत् में जीवित रहना चाहिए।" हे सद्गुरु समर्थ ! आप अपने इसी वचन के अनुसार कीर्ति- रूप से और आत्मस्वरूप से भी-अमर हैं । केवल आप अमर नहीं हैं; किन्तु असंख्य लोगों को आप अपने आदर्श से अमर कर चुके हैं, अमर कर रहे हैं और अमर करेंगे। जब तक इस आर्यावर्त में धर्म का नाम है-जब तक हिन्दुओं को ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास है; और जब तक इस पवित्र भूमि में “ महाराष्ट्र " के नाम पर भारतवासियों को अभिमान है तब तक आप और आपका उपदेश, इस पृथ्वी पर, अटल, अचल और अमर है। समर्थ और शिवाजी। गत संख्या में इस बात का उल्लेख किया गया है कि शिवाजी ने श्रीरामदासस्वामी को अपना गुरु बनाया था, और यह भी कहा गया है कि इनका परस्पर सम्बंध बहुत गहन और महत्त्व का है । कुछ आधुनिक लेखकों में, इन दो व्यक्तियों के ऐतिहासिक सम्बंध में कुछ मतभेद है। यद्यपि यह वात सर्वमान्य है कि रामदासस्वामी शिवाजी के गुरु थे, उनकी आज्ञा पालन करना शिवाजी अपना परम धर्म समझते थे, तथापि दोनों की भेंट कब और किस स्थान में हुई, शिवाजी ने उपदेशमंत्र किस समय लिया, गुरु और शिष्य का पर- स्पर बर्ताव कैसा था, शिवाजी किन किन बातों में अपने गुरु से सलाह लिया करते थे, स्वधर्म और स्वराज्यस्थापन के महत्कार्य में समर्थ की कितनी और किस प्रकार की सहायता थी, इत्यादि कुछ प्रश्नों के विषय में कुछ थोड़ा मतभेद पाया जाता है। अधिकांश विद्वानों की राय देखने से जान पड़ता है कि ये प्रश्न बहुत शीघ्र हल हो जायेंगे । महाराष्ट्र की ऐति- हासिक सामग्री की खोज और जाँच करनेवाले विख्यात प्रोफेसर राजवाड़े इस विषय में