पृष्ठ:दासबोध.pdf/३१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

समान ] मीन-लक्षण। २३१ गया है ॥३॥ सूक्ष्म देह का शोध करने से मालम होता है कि नंतःकरण, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार श्रादि नाना तत्वों की उपाधियों से यात्मा अलग है ॥३६॥ स्यूल, सूक्ष्मः कारण, महाकारण, विराट, हिरण्यगर्भ, अन्याकृत और मूलप्रकृति नाम के श्राट देह हैं॥४०॥ चार पिंड में, चार ब्रह्मांड में-इस प्रकार कुल आठ देह हैं। इनमें प्रकृति और पुरुप बढ़ा देने से दस देह हो जाते हैं ॥ ४२ ॥ ऐसा तत्वों का खना है-यात्मा उनका साक्षी है; पर तौभी वह उनसे अलग है-कार्य, कर्ता और कारण ये तीनों उसके दृश्य है।॥ ४२॥ जीवशिव, पिंडब्रह्मांड, इत्यादि माया-अविद्या का गड़बड़ है। यह गड़बड़ बतलाया जाय तो बहुत विस्तृत है; परन्तु आत्मा इससे अलग है ॥४३॥ वास्तव में देखने से श्रात्मा चार हैं; उनका लक्षण बतलाते हैं; इसे दृढ़ता- पूर्वक स्मरण रखिये ॥ २४ ॥ पहला जीवात्मा, दूसरा शिवात्मा, तीसरा परमात्मा, जो सम्पूर्ण विश्व का श्रात्मा है, और चौथा निर्मलात्मा ॥४५॥ माया के कारण इन चारों में ऊंचनीच का भेद भासता है; पर वास्तव में ये चारों एक ही हैं। इसका दृशान्त लीजिएः-॥ ४६॥ जैसे घटाकाश, मठाकाश, महदाकाश और चिदाकाश-ये चार भेद आकाश के (उपाधि के कारण ) है; पर वास्तव में सव मिल कर श्राकाश एक ही है ॥ १७॥ वैसे ही, जीवात्मा, शिवात्मा, परमात्मा और निर्मलात्मा- ये चार भेद सिर्फ माया के कारण है; पर वास्तव में कुल मिल कर आत्मा एक ही है ॥ ४८ ॥ घट (घड़ा, पात्र) में जो आकाश व्यापक (भरा हुआ) है वह घटाकाश है । उसी तरह पिंड (सचराचर-देह ) में जो ब्रह्मांश व्याप्त है उसे जीवात्मा कहते हैं ॥ ४६॥ मठ (मन्दिर, भवन) में जो अाकाश व्यापक है वह मठाकाश है, वैसे ही ब्रह्मांड में जो ब्रह्मांश है वह शिवात्मा है॥५०॥मठ के बाहर जोनाकाश फैला हुआ देख पड़ता उसे महदाकाश कहते हैं-इसी तरह ब्रह्मांड के बाहर जो ब्रह्मांश है उसे परमात्मा कहते हैं ॥ ५१ ॥ जैसे 'चिदाकाश' घटमठादि उपाधियों से अलग होता है उसी प्रकार परमात्मा भी दृश्यरूप उपाधि से अलग है ॥५२॥ उपाधि के योग से भिन्न मालूम होने पर भी, जैसे आकाश अभिन्न है, वैसे ही स्वानन्दधन, सच्चिदानन्द परमात्मा भी समरस और अभिन्न है ॥५३ ॥ दृश्य में भीतर-वाहर, निरन्तर, परमात्मा व्याप्त है। उसकी बड़ाई करने के लिए शेप भी असमर्थ है ॥५४ ॥ इस परमात्मा को जान लेने से जीवपन नहीं रहता । उपाधि को देखते हुए मालुस होता है कि जीवात्मादि चारों भेद उसीके योग से हैं; पर वास्तव में