पृष्ठ:दासबोध.pdf/३१३

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दासबोध। [ दशक ८. . वे सब अभिन्न हैं ५५ ॥ प्राणी, जीवपन के कारण, एकदेशी होकर, अंइंकार के योग से, जन्म के फेर में पड़ गया है; पर विवेक-द्वारा देखने पर जान पड़ता है कि, उसे जन्म श्रादि कुछ नहीं है ! ॥ ५६ ॥ अस्तु । जन्ममृत्यु से छूट जाने को मोक्ष कहते हैं और तत्वों को ढूंढ़ते से वास्तविक 'वस्तु ' मिलती है ॥ ५७ ॥ वही वस्तु हम हैं-" सोहं"- इस महावाक्य का तात्पर्य साधु लोग ही अपने मुख से बतलाते हैं ॥ ५८ ॥ जिसी क्षण में साधु अनुग्रह करता है उसी क्षण मोक्ष हो जाता है-श्रात्मा में बंधन कहां से आया!॥५६॥ इतने से आशंका मिट जाती है- संदेहवृत्ति अस्त हो जाती है-संतसंग से तत्काल मोक्षपदवी मिलती है ॥६॥जैसे स्वप्न में बँधा हुआ प्राणी जागृति में आने पर मुक्त हो जाता है उसी प्रकार अज्ञान के कारण बद्ध हुआ जीव, ज्ञान से मोक्ष पा जाता है॥ ६१ ॥ आज्ञान-निशि का अंत होने पर संकल्प-दुःख नाश हो जाते हैं-और तत्काल मोक्ष की प्राप्ति होती है ॥ ६२ ॥ स्वप्न का बंधन तोड़ने के लिए दूसरे साधनों की आवश्यकता नहीं-उसके लिए जागृति को छोड़ कर और कोई प्रयत्न है ही नहीं ॥ ६३ ॥ उसी प्रकार जीव, जो संकल्प से बँधा हुना है, उसे और दूसरा उपाय ही नहीं है-उसका बंधन विवेक से ही छूटेगा॥६॥ विवेक बिनाजो जो उपाय किये जायेंगे सब व्यर्थ होगे और विवेक से देखने पर तो प्राणी स्वयं प्रात्मा ही है! ॥६५॥ श्रात्मा में न तो बद्ध है न मोक्ष है-वहां दो में से कुछ भी नहीं है ! तथा जन्म और मृत्यु का होना भी आत्मा मैं कभी सम्भव नहीं!॥६६॥ आठवां समास--परमात्मा का दर्शन । ॥ श्रीराम ॥ पीछे यह बताया गया कि परमात्मा तूही है। अब उस परमात्मा को देखिये:- ॥१॥ परमात्मा में जन्म-मृत्यु, आवागमन और बन्ध या मोक्ष नहीं है ॥२॥ वह निर्गुण, निराकार, अनंत, अपार और नित्य- निरन्तर जैसा का तैसा ही है ॥३॥ वह सब में व्यापक है, अनेक में एक है और उसका विवेक अतर्कनीय हैः ॥ ४॥ परमात्मा की स्थिति ऐसी ही. (जैसी ऊपर कही गई ) श्रुति और वेद बतलाते हैं । इसमें संशय नहीं कि परमात्मा भक्ति से मिलता है।वह भक्ति नव प्रकार की