पृष्ठ:दासबोध.pdf/३१५

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२३४ दासबोध। [ दशक ८. 56 अस्तु । जव भत्तापन से परमात्मा का दर्शन किया जाता है तभी पर- मात्मा का ऐश्वर्य अपने में आता है ॥ २४ ॥ देह ही को 'मैं' मान लेने से स्वाभाविक ही देहदुख भोगना पड़ता है और देहातीत होकर रहने ले परब्रह्म मिलता है ॥ २५ ॥ अब वतलाइये कि देहातीत कैसे हों, पर- ब्रह्म कैसे पावें और ऐश्वर्य के कौन से लक्षण हैं ? ॥ २६ ॥ इसका उत्तर बतलाते हैं। सावधान होकर सुनिये:-॥ २७ ॥ वस्तु' देहातीत है और वही परब्रह्म तू अपने को जान । तुस विदेह को देहसंग का कोई काम नहीं है " ॥ २८ ॥ ऐसी (उपर्युता प्रकार की) जिसकी बुद्धि हो जाती है, उसका चेद भी वर्णन करते हैं और नाना शास्त्र उसे, ढूंढ़ने पर, नहीं पा सकते ॥ २६ ॥ देहबुद्धि छोड़ने पर वास्तव में यह ऐश्वर्य श्रा जाता है और देह ही को 'मैं' मान लेने से अधोगति होती है ॥ ३० ॥ अस्तु । साधु-वचन को मिथ्या न मानना चाहिए, क्योंकि इससे पाप लगता है ॥ ३१ ॥ इस पर शिष्य पूछता है कि "हे स्वामी एक बार सुसे यह बतला दीजिए कि, साधु-वचन क्या है, और किस पर विश्वाल रखना चाहिए ? ॥ ३२॥ "स्वानंदधन, अजन्मा और सोहं शब्द से निर्दिष्ट जो आत्मा है वही तू है" यही साधु-वचन हैं और इसी पर विश्वास रखना चाहिए ॥ ३३ ॥ महावाक्य का यही गुह्य है कि "तू ही निरंतर ब्रह्म है" । इस वचन को भूलना ही न चाहिए ॥ ३४॥ इस कथन को निर्धान्त कभी न मानना चाहिए कि " जब देह का अंत होगा तब मैं अनन्त (ब्रह्म) को पाऊंगा" ॥ ३५ ॥ कोई कोई मूर्स कहते हैं कि जव कल्पान्त में माया नाश हो जायगी. तब हम को ब्रह्मप्राप्ति होगी- अन्यथा नहीं ॥ ३६ ॥ यह कहना मिथ्या है कि, माया का जब कल्पांत होगा, अथवा देह का जब अंत होगा, तब मैं ब्रह्म पाऊंगा । इस प्रकार समाधान नहीं हो सकता।समाधान का लक्षण ही अलग है ॥३७॥३८॥ (यह मूर्खता की कल्पना है कि ) सारी सेना मर जाने पर राज्यपद प्राप्त किया जाय ! उनको यह नहीं मालूम कि, सेना के उपस्थिति रहते ही, राज्य कर सकते हैं ॥ ३६॥ वह समाधान प्राप्त करना चाहिए कि, जिसमें माया रह कर भी, नहीं रहती और देह के रहते हुए ही, विदेह- दशा आ जाती है ॥ ४० ॥ राज्यपद हाथ आजाने पर, फिर सेना बनी भी रहे, तो कोई हर्ज नहीं; क्योंकि यह तो हो ही नहीं सकता कि, सेना के रहने से राज्य चला जाय ॥४१॥ आत्मज्ञान प्राप्त हो जाने पर यही हाल दृश्य देहभान का है। देहभान दृष्टि पड़ने से कुछ समाधान जा नहीं