पृष्ठ:दासबोध.pdf/३१६

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समात ८ परमात्मा का दर्शन। २३५ लकताः ॥ ४२ ॥ रास्ते में किसी वृन्न की सर्पाकार जड़ देखने पर वक्षुत तर लगता है, पर जन यह मालूम हो जाता है कि, यह सर्प नहीं है, जड़ है, तब फिर उसे कोई नहीं मारता ॥ १३ ॥ इसी प्रकार माया भयानक से पर विचार कर देखने से मिथ्या है; तब फिर उसकी धाक क्यों 'मानना चाहिए !॥ ४ ॥ मृगजल की बाढ़ को देख कर यदि कोई कहे, कि कैसे पार होऊंगा, तो यह भ्रम है; उसका विचार करने से कोई संकट की बात नहीं ॥ ४५ ॥ भयानक स्वप्न देखने से स्वप्तावस्था में बहुत डर मालम होता है; पर जग उठने पर डर क्या करना चाहिए ?॥ ४६॥ हां, इतना जरूर है कि माया कल्पना को दिखती है; पर कल्पनातीत हो जान पर, यहां, निर्विकल्प-दशा में, माया कहां आ सकती है ? || ४७॥ यह तो सभी कहते हैं कि, अंत में जैसी मति होती है वैसीगति मिलती है। इस लिए देहबुद्धि का नाश होने पर सहज ही सोन की प्राप्ति होती है ॥ ४८ ॥ स्थूल, सूक्ष्म, कारण, महाकारण, इन चारों देहों के अंत से, और जन्म से, आत्मा लिप्त है वही आत्मा'तू' है ॥ ४६॥ अस्तु । जिसकी ऐसी (उपर्युक) मति है उसे ज्ञान से श्रात्मगति मिलती है-यह गति-अवगति से अलग हो जाता है ॥ ५० ॥ जहां वेदों की भी मति मन्द हो जाती है वहां गति-अवगति कहां से आई-वहां तो आत्म-शास्त्र-गुरु-प्रतीति की एकता हो जाती है-ये तीनों प्रतीतियां एक हो जाती हैं ॥ ५६ ॥ सद्गुरुवोध से जीवपन की भ्रान्ति मिटती है, वस्तु' श्रात्मानुसव में आती है और प्राणी उत्तम गति पाता है ॥५२॥ सद्गुरु-वोध के आते ही चारो देहों का अंत हो जाता है, और इसीसे तत्स्वरूप में निदिध्यास लगता है।५३||उस निदिध्यास से प्राणी अन्त में स्वतः ध्येय (परब्रह्म) ही बन जाता है और सायुज्यमुक्ति का स्वामी वन वैठता है ! ॥ ५४ ॥ दृश्य पदार्थों का निरसन करने से वास्तव में जो कुछ बचता है वह सब श्रात्मा ही है। ध्यान से विचार करने पर मालूम होता है कि दृश्य, आदि से ही, मिथ्या है ॥ ५५ ॥ इस मिथ्या (माया) के मिथ्यात्व को समझना, और उस मिथ्यात्व को अनुभव में लाना ही,

  • जैसे इधर राज्यपद और सेना है वैसे ही उधर आत्मज्ञान और दृश्य देहभान है।

सारी सेना मर जाने पर राजा'वनने की अपेक्षा, सेना बनी रहते ही राजा होना अच्छा है। माया बनी रहने पर भी, वह मिथ्या जान पड़ना चाहिए और देह बनी रहने पर भी, विदेहस्थिति प्राप्त होनी चाहिए। राज्यपद मिलने पर सेना के बने रहने से क्या बिगड़ता है? इसी प्रकार आत्मज्ञान हो जाने पर माया और देह क्या कर सकते हैं? 6