पृष्ठ:दासबोध.pdf/३१७

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२३६ दासबोध । [ दशक ८ मोन है ॥ ५६॥ जो सद्गुरु-वचन हृदय में धरता है वही मोक्ष का अधि- कारी है। वह वारम्बार, अति आदर से, श्रवण मनन किया ही करता है ॥ ५७ ॥ जहां दोनो पक्ष नहीं रहते और जहां न लक्ष है, न अलक्ष है ठीक वही आत्मा है-और उसीका नाम मोक्ष है ॥ ५८ ॥ वहां ध्यान- धारणा की समाप्ति हो जाती है, कल्पना निर्विकल्प में लीन हो जाती है और केवल ज्ञप्तिमात्र-ज्ञानस्वरूप सूक्ष्म ब्रह्म-बच रहता है ॥ ५६ ॥ भव-मृगजल नहीं रहता; मिथ्या बन्धन छूट जाता है। उस दशा में, वह मुक्ता, अजन्मा (अात्मा) को सचसुच जन्मदुःख से मुक्त करता है !॥ ६० ॥ निस्संग की संगव्याधि, विदेह की देहबुद्धि और निष्प्रपंच की उपाधि विवेक से तोड़ डालता है !॥ ६१ ॥ अद्वैत का द्वैत तोड़ डालता है, एकान्त को एकान्त दे देता है और अनन्त को अनन्त का अन्त दे देता है ! १६२॥ जागृति को जगाता है, जगे हुए को सावधान करता है और आत्मज्ञान को आत्मज्ञान का प्रबोध करता है !॥ ६३ ॥ अमृत को अमर, मोक्ष को सुक्ति का घर, बनाता है और संयोग को निरंतर योग देता है! ॥ ६४ ॥ निर्गुण को 'निर्गुण' करता है। इस प्रकार सार्थक का सा- होता है और बहुत दिन में अपने को 'अपना' मिलता है!॥६५॥ द्वैपर पड़दा फट जाता है; अभेद भेद को तोड़ डालता है और भूत ही (पंचभूतात्मक शरीर की अहंता) की बाधा निकल जाती है।॥ थन साधन का फल मिलता है, निश्चल को निश्चल मिलता है और तिव वल से निर्मल का भी 'मल' चला जाता है । ॥ ६७ ॥ पास था कि हुए थे । अब, जिसका जो है वह उसको प्राप्त हो जाता है, औरंगी- ही देखते जन्मदुःख मिट जाता है ! ॥ ६॥ दुष्ट स्वप्न में ब्राह्मररूपांत जाति पाकर घबड़ाता है; पर जग उठने पर वह अपने को अप्लार जाति में पाता है ॥६६॥ इसी प्रकार जीव, जो अज्ञानरूप स्वप्न में | सत्य स्वरूप को, भूला हुआ था; ज्ञानरूप जागृतिश्रा जाने पर, अपने द स्वरूप को पहचानता है । अस्तु । ऐसे ही ज्ञानी के लक्षण श्रो समास में वतलाये गये हैं॥७॥ नववाँ समास-साधु-क्षण । ॥ श्रीराम जैसे अमृत पान करने पर शरीर तेजस्वी हो जाता है वैसे ही सत्स्व- रूप का अनुभव हो जाने पर, फिर सन्तों के लक्षणों को क्या पूछना !