पृष्ठ:दासबोध.pdf/३१९

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दासबोध। [दशक ८ अभ्यास करने से, ये लक्षण कभी हाथ नहीं भाते । वास्तव में, स्वरूप में स्वरूप ही होकर रहना चाहिए ॥ २०॥ निर्गुण में वृत्ति रहना ही सव से बड़ा अभ्यास है। सन्तसमागम करके, अध्यात्म-निरूपण का मनन करने से, स्वरूपस्थिति आ जाती है ॥ २१ ॥ स्वरूपाकार होकर उत्तम लक्षणों का अभ्यास करना चाहिए। स्वरूप' छोड़ देने से गोस्वामी सटकते हैं ! ॥ २२॥ अस्तु, अव यह कथन बस करो । साधू के लक्षण सुनो, जिनसे साधक को समाधान प्राप्त होता है ॥ २३ ॥ स्वरूप में जब कल्पना लीन हो जाती है तब 'कामना कैसे रह सकती है ? इसी कारण साधुजनों के पास 'काम' नहीं रहता ॥ २४ ॥ कल्पना किया हुआ विषय जब हाथ से चला जाता है तब 'क्रोध' आता है, पर साधुजनों की अक्षय सम्पत्ति कभी जा नहीं सकती ॥ २५ ॥ इसी लिए वे 'क्रोध-रहित होते हैं-वे नाशवंत पदार्थ छोड़ कर शाश्वत स्वरूप को जानते हैं ॥२६॥ जहां दूसरा भेद ही नहीं है वहां क्रोध आवे तो किस पर ? इसी लिए साधुजन सचराचर में क्रोधरहित वर्ताव करते हैं ॥ २७ ॥ वे आप.अपने ही से आनंदित रहते हैं-फिर मद' किस पर करें, इस कारण (मद के न होने से) वे 'वादविवाद' से भी अलग रहते हैं ॥ २८ ॥ साधु निर्वि- कार-स्वरूप होता है; उसमें तिरस्कार' कहां से भाया? जहां सब श्राप ही अपना है वहां 'मत्सर' किस पर किया जाय ? ॥ २६ ॥ साधु अना- यास ही 'वस्तु'-रूप होता है-इस कारण उसमें मत्सर' नहीं हो सकता- मदमत्सर के पिशाच साधु को नहीं लगते ! ॥ ३०॥ साधु स्वयंभु स्वरूप होता है, अतएव, उसमें 'दंभ' कहां से आ सकता है ? वहां तो द्वैत का आरंभ ही नहीं होता ॥ ३१॥ जो दृश्य को नष्ट कर देता है उसमें 'प्रपंच' कैसे श्रा. सकता है ? इस लिए साधु को 'निष्प्रपंच' जानना चाहिए ॥ ३२ ॥ सारा ब्रह्मांड उसका घर होता है । पंचभौतिक पसारे को वह सिथ्या समझ कर, सत्वर (शीघ्र ) त्यांग कर देता है॥ ३३ ॥ इस कारण उसमें 'लोभ' नहीं होता-साधु सदा 'निर्लोभ' रहता है-उसकी वासना शुद्धस्वरूप में समरस (मिल जाना) हो जाती है ॥ ३४॥ जब सब अपना आप ही है तब शोक' किसका किया जाय? इस कारण साधु को 'शोकरहित जानना चाहिए ॥३५॥ नाशवान् दृश्य को छोड़ कर, शाश्वत स्वरूप का सेवन करने के कारण, साधु को शोकरहित जानना चाहिए ॥ ३६ ॥ शोक से वृत्ति को दुखित करना चाहें तो (यह नहीं हो सकता; क्योंकि) साधु में वृत्ति की निवृत्ति होगई है-इस लिए साधु (जो निवृत्त हैं) सदा शोकरहित ही होता है॥३७॥यदि 'मोह' से मन को व्याप्त करना