पृष्ठ:दासबोध.pdf/३२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४० दासबोध । [दशक ८ अध्यात्म-निरूपण के सुनने से शरीर में साधुओं के लक्षण आ. जाते है, परन्तु स्वरूपानुसन्धान रहना बहुत आवश्यक है ॥ ५६ ॥ निरंतर ब्रह्मस्वरूप में रहने से वास्तव में स्वयं भी 'स्वरूप' हो जाते हैं, इसके बाद, शरीर में साधु के लक्षण आने में, देर नहीं लगती ॥ ५७ ॥ स्वरूप में मति रहने से, सारे अवगुण छूट जाते हैं; पर इसके लिए सत्संगति और अध्यात्म-निरूपण चाहिए ॥ ५८ ॥ अस्तु । सारी सृष्टि में अनुभव एक. ही नहीं है-अनेक अनुभव है-वे सब अगले समास में बतावेंगे ॥ ५६॥ लोग किस स्थिति से रहते हैं और कैसा अनुभव करते हैं, सो सब ध्यानपूर्वक सुनिये ॥ ६०॥ दसवाँ समास-बहुधा अनुभव । ॥ श्रीराम ॥ जब हम, लोगों के भिन्न भिन्न अनुभव की ओर, ध्यान देते हैं तब जान पड़ता है कि संसार में बड़ा गड़बड़ मच रहा है। इसका वृत्तान्त, कौतुक से सुनियेः-॥१॥ कोई कहता है कि, गृहस्थी में ही रहने से तर सकते हैं क्योंकि यह सव पसारा कुछ अपना नहीं है-सव जीव ईश्वर के हैं। ॥२॥ कोई कहता है कि, यह नहीं हो सकता। मोह आ ही जाता है और पेट के लिए कुटुम्ब की सेवा करनी ही पड़ती है ॥३॥ कोई कहता है कि, स्वाभाविक ही सुख से गृहस्थी में रहना चाहिए; पर सद्गति के लिए कुछ दानपुण्य भी करते रहना चाहिए ॥ ४॥ कोई कहता है कि, संसार झूठा है, वैराग्य लेकर देशाटन करना चाहिए-इलसे स्वर्गलोक के मार्ग खुलते हैं ! ॥ ५॥ कोई कहता है कि, कहां जाय, व्यर्थ क्यों धूमैं अपने ही आश्रम में; आश्रम-धर्म करके, रहना चाहिए ॥ ६॥ कोई कहता है कि, कहां का धर्म लाये-सारा अधर्म हो रहा है-इस संसार में रह कर नाना प्रकार के काम करने ही पड़ते हैं ॥७॥ कोई कहता है कि, जहां तक हो सके, वासना श्रच्छी रहना चाहिएं, इसीसे अनायास संसार से पार हो जाते हैं ॥८॥ कोई कहता है कि, मुख्य कारण भाव है-: . भाव ही से परमेश्वर मिलता है और बाकी सब यह व्यर्थ का गाथा- जाल है !॥ ॥ कोई कहता है कि, जितने बड़े (बुजुर्ग) लोग हैं उन्हें लव को देवता ही मानना चाहिए और मावाप की पूजा अनन्य भाव से करते रहना चाहिए ॥१०॥ कोई कहता है कि, ब्राह्मण और देवता की