पृष्ठ:दासबोध.pdf/३२७

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नववाँ दशक। पहला समास-ब्रह्म-निरूपण ॥ श्रीराम ॥ यह मुझे बतलाइये कि निराकार, निराधार और निर्विकल्प का क्या अर्थ है ॥ १॥ निराकार का अर्थ यह है कि परब्रह्म का आकार नहीं है, निराधार का अर्थ यह है कि परब्रह्म का अाधार नहीं है और निर्विकल्प अर्थात् उस परब्रह्म की कल्पना नहीं की जा सकती ॥२॥ निरामय; निराभास, निरवयच का अर्थ सुसे बतलाइये ॥ ३ ॥ निरामय अर्थात् परब्रह्म विकार-रहित है, निराभास अर्थात् उसका भास नहीं होता और निरवयव अर्थात् उसमें अवयव भी नहीं है ॥ ४॥ मुझे निष्प्रापंच, निष्कलंक और निरुपाधि का अर्थ बतलाइये ॥ ५॥ निष्प्रपंच अर्थात् पर- ब्रह्म से प्रपंच नहीं है, निष्कलंक अर्थात् उसमें कलंक नहीं है, और निरु- पाधि अर्थात् उसमें उपाधि नहीं है ॥ ६ ॥ जिरुपम, निरवलम्ब और निरपेक्ष का अर्थ मुझे बतलाइये ॥ ७॥ निरुपम अर्थात् उस परब्रह्म की ' उपमा नहीं है, निरवलम्ब अर्थात् उसे अवलम्ब नहीं है और निरपेक्ष का अर्थ यह है कि, उसमें अपेक्षा नहीं है ॥८॥ निरंजन, निरंतर और निर्गुण का अर्थ मुझे बतलाइये ॥ ६ ॥ निरंजन अर्थात् उसमें कालापन नहीं है, निरन्तर अर्थात् उसमें अन्तर नहीं है और निर्गुण अर्थात् उसने गुण नहीं है ॥ १०॥ निरसंग, निर्मल और निश्चल का अर्थ क्या है, सो मुझे बतलाइये ॥ ११ ॥ निस्संग अर्थात् जिसमें संग नहीं है, निर्मल, जिसमें मल ही नहीं है और निश्चल, जिसमें चलन नहीं है, ऐसा वह पर- ब्रह्म है ॥ १२ ॥ निश्शब्द, निर्दोष और निवृत्ति का अर्थ क्या है ? ॥ १३ ॥ निश्शब्द अर्थात् जिसमें शब्द नहीं, निर्दोष; जिसमें दोष नहीं और निवृत्ति; जिसमें वृत्ति नहीं, ऐसा वह परब्रह्म है ॥ १४ ॥ निष्काम, निर्लेप और निष्कर्म का अर्थ मुझे बतलाइये ॥ १५ ॥ निष्काम; जिससे काम नहीं है, निर्लेप; जिसमें लेप नहीं है और निष्कर्म; जिसमें कर्म नहीं है, ऐसा वह परब्रह्म है ॥ १६ ॥ अनाम्य, अजन्मा और अ- त्यक्ष का अर्थ क्या है, मुझे बतलाइये ॥ १७ ॥ अनाम्य; जिसका नास नहीं, अजन्मा; जिसका जन्म नहीं और अप्रत्यक्ष अर्थात् जो प्रत्यक्ष नहीं है, ऐसा वह परब्रह्म है ॥ १८ ॥ अगणित, अकर्तव्य, अक्षय का अर्थ क्या है, मुझे बतलाइये ॥ १६ ॥ अगणित; जो गिना नहीं जा सकता,