पृष्ठ:दासबोध.pdf/३३४

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समास ४]] नजान और सुजान। २५३ बह मिला होना है यत) आत्मा सर्वगत है ॥ ३६॥ (पारस से बना इन्ना) सोना फिर लोहा नहीं हो सकता, इसी प्रकार साधु का जन्म फिर नहीं हो सकता है परन्तु जो जड़मूढ़ अज्ञान प्राणी हैं उन्हें यह बात समझ ही नहीं पड़ती ! ॥ ३७॥ जैसे अंधे को कुछ नहीं देख पड़ता उलो प्रकार उन अज्ञानियों को भी सत्य बात नहीं मालूम होती । उन्हें, सन्निपान में बर्राते हुए पुरुप को तरह, पागल समझना चाहिए ॥ ३८ ॥ जो स्वप्न में डरा हुआ है वह स्वप्न-भय से वरता है। वह भय जगते हा मनुष्य की कैसे हो सकता है ? ॥ ३६॥ किसी वृक्ष की सर्पाकार जड़ को देख कर कोई डर जाता है और कोई उसे पहचान जाता है; अब दोनों की दशा एक कैले मानी जा सकती है ? ॥ ४० ॥ एक आदमी उस जड़ को हाथ से पकड़े हुए है और वह (भ्रम का सर्प) उसे नहीं काटताः परन्तु दूसरे आदमी को यह विश्वास ही नहीं आता । इसका मतलब यही है कि, उसको कल्पना ही उसे डरवा रही है ! .॥ ४१ ॥ जिन्सको विधू या सर्प काटता है वही दुखित होता है; लेकिन उसके काटने के दुख ले दूसरे लोग कैसे घबड़ा सकते हैं ? ॥ ४२ ॥ इनने से श्रोताओं का संदेह मिट जाता है । अर्थात् ज्ञान, शानियाँ ही को मालूम होता है और अज्ञानों का जन्ममरण नहीं छूटता !॥ ४३ ॥ सिर्फ शान न होने के कारण ही वहुत लोग पतन हो चुके हैं। अज्ञान के कारण ही लोग जन्ममृत्यु का कष्ट उठाते हैं ॥ १४॥ इसीका निरूपण अगले समास में सावधान होकर सुनिये ॥ ४५ ॥ चौथा समास-अजान और सुजान। ॥ श्रीराम ॥ पृथ्वी पर सब तरह के लोग हैं, कोई सम्पन्न हैं कोई दुर्बल हैं, कोई निर्मल हैं और कोई मैले-कुचैले हैं-ऐसा क्यों है ? ॥ १॥ कितने ही राजा बन कर आनन्द करते हैं, कितने ही श्रादमी दरिद्रता भोगते हैं। कितनों ही की उत्तम स्थिति है और कितने ही अधमाधम स्थिति में हैं ॥ २॥ यह हाल किस कारण हो रहा है ? मुझे बतलाइये ॥३॥ उत्तर:-यह सब गति, गुण के कारण है । जो गुणवान् हैं वे तो भाग्यश्री भोगते हैं और जो अवगुणी हैं उन्हें दरिद्र-भोग मिलता है । इसमें कुछ भी संदेह नहीं ॥४॥ जो जिस जाति में उत्पन्न होता है वह जब उसी