पृष्ठ:दासबोध.pdf/३३५

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२५४ दासबोध । [ दशक ९ जाति का व्यवसाय सीखता है तब लोग उसकी प्रशंसा करते हैं ॥ ५ ॥ सुजान कार्य करता है और अजान कुछ नहीं करता । सुजान पेट भरता है और अजान भीख मागता है ॥ ६॥ यह बात प्रगट ही है-इसे सब लोग प्रत्यक्ष देखते हैं-कि, जिसके पास विद्या नहीं है वह अभागी होता है और विद्यावाला भाग्यवन्त होता है ॥७॥ जहां देखो वहीं बुजुर्ग लोग यह सिखापन दिया करते हैं कि, "अपनी विद्या न सीखोगे तो क्या भीख मागोगे?" ॥८॥ बाप के अभागी होने पर भी, कभी कभी लड़का भाग्यशाली देखा जाता है । इसका कारण यही है कि, वह लड़का विद्या में बड़ा होता है ॥ ६ ॥ विद्या, बुद्धि, विवेक, उद्योग, कुशलता और व्यापार, आदि गुणों के न होने से मनुष्य अभागी होता है ॥ १०॥ इतने सव गुण जिसमें होते हैं उसके पास वैभव की कमी नहीं रहती । वैभव को छोड़ने पर भी, वह आप ही आप, उसके पीछे लगता है ॥११॥ वुजुर्ग धनवान् और बेटे भिखारी होने का कारण यह है, कि बेटे अपने बुजुर्गों का सा उद्योग नहीं करते, इस लिए वे भिखारी होते हैं ॥१२॥ जैसी विद्या होती है पैसा ही हौसला- उत्साह-होता है और जैसा व्यापार होता है वैसा ही वैभव मिलता है। लोग वजन, या गौरव, देख कर मान करते हैं ॥ १३ ॥ जहां विद्या- वैभव नहीं होता वहां स्वच्छता कैसे रह सकती है ? अभाग्य के कारण मनुष्य कुरूप, मैला-कुचैला और रोगी-सा जान पड़ता है ॥ १४ ॥ जब गुणवान् पशु-पक्षियों का भी सब लोग आदर करते हैं तब मनुष्य के गुण की प्रतिष्ठा क्यों न हो ? गुण के विना प्राणिमात्र का जीवन व्यर्थ है ॥ १५॥ जिस मनुष्य में गुण नहीं होता उसका गौरव नहीं होता, और सामर्थ्य, महत्व, कौशल, चतुरता आदि कुछ उसमें नहीं होता ॥ १६ ॥ श्रतएव, उत्तम गुण का होना ही सौभाग्य का लक्षण है। अन्यथा सहज ही कुलक्षणता आती है ॥ १७ ॥ सुजान पुरुष का ही मान होता है। कोई भी एक विद्या होने से मनुष्य को महत्व प्राप्त होता है ॥ १८ ॥ प्रपंच या परमार्थ, दो में से किसी एक का भी, अथवा दोनों का, जानने- वाला समर्थ होता है और जो कुछ नहीं जानता उसका जीवन व्यर्थ है ॥ १६॥ अनजानपन में हो बिच्छू सर्प डंस लेता है, जीवघात हो जाता है और प्रत्येक कार्य नष्ट हो जाता है ॥२०॥ अनजानपन से ही मनुष्य फँस जाता है; हठ में पड़ता है ठगा जाता है; और कोई पदार्थ भूल जाता है ॥ २१ ॥ अनजानपन में ही बैरी जीत लेता है, अनजानपन से ही मनुष्य संकट में पड़ता है और अनजानपन से ही संहार होता.