पृष्ठ:दासबोध.pdf/३३६

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समास ४] अजान और सुजान। । है-जीव नाश होता है ।॥ २२ ॥ अपना हित न मालूम होने के कारण लोग यातना भोगते हैं। शान न होने के कारण ही अज्ञान को अधो- गति मिलती है ॥२३॥ माया-ब्रह्मा, जीव-शिव, सारासार और भाव-श्रभाव जानने से जन्म- मरण मिटता है ॥ २४ ॥ निश्चय करके कर्ता कौन है, और बद्ध मुक्त कि कहते हैं-यह जानने से प्राणियों का छुटकारा होता है ॥ २५ ॥ निर्गुण देव पहचानना चाहिये, " मैं" क्या है-लो जानना चाहिए और अनन्य लक्षण पहचानना चाहिए । इससे मुक्ति मिलती है ॥२६॥ जितना ही जान कर छोड़ दिया जाता है उतना ही दृश्य (माया) को पार कर लेते हैं । ज्ञाता को जानने से मैपन का मूल मिट जाता है ॥२७॥ बिना जाने चाहे करोड़ों, नाना प्रकार के, साधन क्यों न कर डालो; पर मोक्ष के अधिकारी नहीं बन सकते ॥ २८ ॥ माया-ब्रह्म पहचानना चाहिए और स्वयं 'अपने' को जानना चाहिए । बस, इतना जानने से सहज ही जन्म-मरण मिट जाता है ॥२६॥ राजा या धनवान् पुरुप के मन की बात जान कर तव, प्रसंग के अनुसार, बर्ताव करने से बहुत वैभव मिलता है ॥३०॥ इस लिए जानना कोई सामान्य बात नहीं है। जानने से सर्वमान्य बनते हैं और कुछ भी न जानने से सब जगह अप- मान होता है ॥ ३१ ॥ कोई पदार्थ देख, उसमें भूत की भावना करके, अजान पुरुप डर कर प्राण छोड़ देते हैं और सुजान आदमी यह बात जानते हैं कि भूतों की बात मिथ्या है ॥ ३२ ॥ सुजान को मर्म मालम हो जाता है और नजान श्रादमी मिथ्या कर्मों में फंसा रहता है धर्म, अधर्म, श्रादि सब कुछ, जानने ही से मालूम होता है ॥ ३३ ॥ अजान को यमयातना मिलती है, और सुजान किसी संकट में नहीं पड़ता। जो सब कुछ जानकर उसका विचार करता है वही मुक्त होता है ॥३४॥ कोई राजनीति की बात न जानने के कारण, कभी कभी अप- मान के साथ साथ, प्राणों से भी हाथ धो बैठना पड़ता है। अनजानपन के कारण सभी पर संकट आते हैं ॥ ३५ ॥ इस लिए अनजानपन में रहना अच्छा नहीं है.। अनजान प्राणी अभागी हैं। जानने और समझने से जन्ममरण मिटता है ॥३६॥ इस लिए जानने में असावधानी न करनी चाहिए । जानना ही एक मुख्य उपाय है । जानने से परलोक का मार्ग मिलता है ॥ ३७॥ जानना सब को अच्छा मालूम होता है; पर मूर्ख को अच्छा नहीं जान पड़ता! अलिप्तता की पहचान जानने से ही मालूम होती है ॥ ३८ ॥ जानने (ज्ञान) के बिना, प्राणियों को और कौन