पृष्ठ:दासबोध.pdf/३३७

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२५६ दासबोध । दशक ९ मुक्त कर सकता है ? कोई भी काम हो; बिना जाने नहीं मालूम होता ॥ ३६ ॥ जानना; अर्थात् स्मरण और न जानना; अर्थात् विस्मरण । अव यह वात चतुर लोग जान सकते हैं कि, इन दोनों में ठीक क्या है ॥४०॥ जो जानकार हैं वे ही चतुर हैं और जो अनजान हैं वे ही पागल और दीन हैं। जानपन से विज्ञान (अनुभवज्ञान ) भी मालूम होने लगता है. ॥४१॥ जहां जानपन कुंठित हुआ कि, वस' समझ लो, वहां बोलना भी खतम हुन्ना । यह दशा आ जाने पर ही अनिर्वाच्य समाधान मिलता है ॥४२॥ इतना सुन कर श्रोता कहते हैं कि, यह ठीक है; हम लोगों को इस से बहुत समाधान प्राप्त हुआ; पर अब हम को पिंड और ब्रह्मांड के ऐक्य का लक्षण बतलाइये ॥४३॥ बहुत लोग कहते हैं कि, जो ब्रह्मांड में है वही पिंड में है; परन्तु आप इसे इस प्रकार वतलावें कि, जिससे हम लोगों को इसका प्रत्यय आ जाय ॥ ४४ ॥ पाँचवाँ समास-पिण्ड और ब्रह्माण्ड । ॥ श्रीराम || यह वात हमारी समझ में नहीं आती कि, पिंड के समान ब्रह्मांड की रचना कैसे है । इस बात की प्रतीति करने के लिए नाना मत भटक रहे हैं ॥१॥ समय समय पर तत्वज्ञ लोग कहा करते हैं कि, जो पिंड में है वही ब्रह्मांड में है ॥२॥ लोगों का कथन है कि, पिंड और ब्रह्मांड दोनों एक ही तरह के हैं। पर यह बात प्रत्यय की कसौटी में अँच नहीं सकती ॥ ३॥ स्थूल, सूक्ष्म, कारण, महाकारण, ये चार, पिंडों के देह हैं और विराट, हिरण्यगर्भ, श्रव्याकृति और मूल-प्रकृति, ये चार,ब्रह्मांड के देह हैं ॥ ४ ॥ यह तो शास्त्रकथन हुना; पर प्रतीति कैसे करें ? प्रतीति का विचार करने से बड़े गड़बड़ में पड़ते है ! ॥ ५॥ जैसे पिंड में अन्तः- करण है वैसे ही ब्रह्मांड में विषणु है; और जैसे पिंड में मन बतलाते हैं, वैसे ही ब्रह्मांड में चन्द्रमा है ॥ ६॥ पिंड में जैसे बुद्धि का होना बतलाते हैं वैसे ही ब्रह्मांड में ब्रह्मा है और पिंड में जैसे चित्त है वैसे ही ब्रह्मांड में नारायण है ॥७॥ पिंड में अहंकार बतलाते हैं। इधर ब्रह्मांड में रुद्र का होना निश्चय करते हैं । यह विचार शास्त्रों में कहा