पृष्ठ:दासबोध.pdf/३३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दासबोध । दशक ९ एव, सारासार का विचार करना चाहिए ॥ २६ ॥ ब्रह्मांड श्राप ही आप हो जाता है और पिंडाकार मान लिया जाता हैं। मान तो लिया जाता है; पर इसका प्रत्यय कभी नहीं आता ॥ २७ ॥ ब्रह्मांड की प्रतीति का विचार करने से बहुत से संशय उठते हैं । वास्तव में यह सब काल्पनिक जानना चाहिए ॥ २८ ॥ पिंड के समान ब्रह्मांड की रचना कौन मान सकता है ? ब्रह्मांड में अनेक पदार्थ भरे पड़े हैं; पर वे पिंड में कहां हैं ? ॥ २६ ॥ साढ़े तीन कोटि भूतों की जातियां, साढ़े तीन कोटितीर्थ और साढ़े तीन कोटि मंत्र पिंड में कहां है ? ॥३०॥ तेंतीस करोड़ देवता, अहासी हजार ऋपि और नव करोड़ कात्यायनी देवी पिंड में कहां हैं ? ॥ ३१ ॥ छप्पन करोड़ चामुंडा देवी, कितने ही प्रकार के करोड़ों जीव और चौरासी लाख योनियों का जमाव पिंड में कहां है ? ॥ ३२ ॥ ब्रह्मांड में और भी जो बहुत से, नाना प्रकार के, पदार्थ अलग अलग निर्माण हुए हैं वे भी सब पिंड में बतलाना चाहिए ॥ ३३ ॥ अनेक ओपधियां, अनेक रसाल फल, नाना प्रकार के वीज, अनाज, ये सब, पिंड में भी बतलाइये ॥ ३४ ॥ यद्यपि यह बतलाने से पूरा नहीं हो सकता, तथापि योही बतलाया भी नहीं जा सकता, और बतलाया हुश्रा ध्यान में न आने से लाज आती है। ॥ ३५ ॥ अस्तु । जब यह बतलाया ही नहीं जा सकता तब फिर व्यर्थ क्यों बोलना चाहिए । सन्देह की कोई जरूरत नहीं ॥ ३६॥ वास्तव में पांच भूत ब्रह्मांड में और पांच ही पिंड में भी वर्तते है । इसे अच्छी तरह समझ लीजिए ॥ ३७ ॥ पांच भूतों का ब्रह्मांड है और यह पिंड भी पंच- भौतिक ही है-इसके अतिरिका जो कुछ है वह सब अनुमान-ज्ञान है। ॥ ३८ ॥ जितना कुछ अनुमान का कथन है उतना सब वमन की तरह त्याज्य है और जो निश्चयात्मक कथन है वही प्रत्ययपूर्ण और प्राय है ॥ ३६ ॥ यद्यपि इस बात का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं होता कि, जो पिंड में है वही ब्रह्मांड में है, तथापि, पंचभूतों का पसारा दोनों में है ॥ ४० ॥ इन दोनों के विपयं में यह सिर्फ अनुमान मात्र है । तब फिर मुख्य समाधान क्या है ? ।। ४१ ॥. छठवाँ समास-पंचभूत और त्रिगुण । ॥ श्रीराम ।। आकाश की तरह ब्रह्म निराकार है । आकाश में जिस प्रकार वायु का