पृष्ठ:दासबोध.pdf/३४७

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. दासबोध। [ दशक ९ कैसे मिलता है ? और उसके मरने के बाद उसका कौन सा अवयव जन्म लेने के लिए रह जाता है ? ॥१॥ जहां एक बार बद्ध प्राणी मर गया वहां फिर कोई अवयव् उसका नहीं बचता और उसका जान- पन तो उसके मरने के पहले ही चला जाता है ॥२॥ इस आशंका का उत्तर श्रबं सावधान होकर सुनिये:-॥ ३॥ चूंकि वासना की वृत्ति प्राणों के साथ रहती है; अतएव, जव पंच-प्राण अपने अपने स्थान छोड़ कर जाने लगते हैं तब घासना भी उन्हींके साथ, देह को छोड़ कर, चली जाती है ॥ ४॥ इस प्रकार, प्राणवायु के साथ, जो वासना पहले चली जाती है वही फिर, हेतु के अनुसार, जन्म लेकर संसार में आती है ॥ ५ ॥ कभी कभी देखा गया है कि, कितने ही प्राणी विलकुल मर जाते हैं; और फिर पीछे से जी उठते हैं। वे ढकेल दिये जाते हैं, इस लिए उनके हाथ, पैर, आदि भी पीड़ा करते रहते हैं ॥ ६॥ यह भी देखा गया है कि, सर्प के काटने से आदमी सर जाता है, और तीन तीन दिन के बाद, वैद्य लोग उसे जिला देते हैं । यह कैसे हो जाता है ? वही वासना फिर लौट भाती है ॥ ७ ॥ कितने ही मृतक लोगों को, .. कोई कोई फिर से जिला देते हैं और यमलोक से प्राणियों को लौटा लेते हैं !॥ ८॥ कितने ही लोग शाप पाकर अन्य देह पाते हैं और, उश्शाप का समय आने पर, फिर अपनी पूर्वदेह में आ जाते हैं ॥ ६ ॥ कितने ही लोग बहुत से जन्म धारण करते हैं; कितने ही परकाया में प्रवेश करते हैं। ऐसे न जाने कितने आये और चले गये ॥१०॥ जैसे फूंक मारते ही अग्नि प्रकट हो जाती है वैसे ही वासनारूपी वायु जन्म पाती है ॥ ११ ॥ मन की नाना वृत्तियां हैं, उन्हींसें वासना उत्पन्न होती है। यद्यपि वासना देखने से दिखती नहीं; पर है वह अवश्य ॥ १२ ॥ वासना में जानपन का हेतु है और जानपन सूलमाया से निकला हुआ तंतु है। यह कारणरूप से मूलमाया में मिश्रित रहता है ॥ १३ ॥ जान- पन कारणरूप से ब्रह्मांड में और कार्यरूप से पिंड में वर्तता है । जल्दी जल्दी में उसका अनुमान करने से वह अनुमान में नहीं आता ॥१४॥ परन्तु वह वायु के स्वरूप की तरह सूक्ष्म है । देवतागण और भूतसृष्टि वायुरूप है ॥ १५ ॥ वायु में नाना विकार हैं। तथापि वायु देखने से दिख नहीं पड़ती। इसी प्रकार जानपन की वासना भी अति सूक्ष्म है- वह भी नहीं दिख पड़ती ॥ १६ ॥ त्रिगुण और पंचभूत वायु में मिश्रित हैं। यह बात यद्यपि अनुमान में नहीं पाती; तथापि मिथ्या इसे कभी नहीं कह सकते ॥ १७ ॥ स्वाभाविक वायु से ही सुगन्ध दुर्गन्ध सालूम