पृष्ठ:दासबोध.pdf/३४८

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गमा ८ बद्ध का पुनर्जन्म । ना और उपना तथा शीतलता पा भास होता है ॥ २८ ॥ वायु जीन मेघ बरसते हैं, वायुहीने नन्नन्न चलते हैं और सारी सृष्टि उस नायु में नी द्वारा बर्तती है ॥ १६ ॥ देवता और भूत भी वायुरूप ही मेयरमान शरीर में आकर भर जाते हैं। विधि-विधान या मंत्रप्रयोग न्न मुद जी उठने हैं ॥ २० ॥ शरीर में देवता लाने से, ब्रह्म-पिशाच दूर जाते. धरोहर मिल जाती है और अनेक गुप्त बातें प्रत्यक्ष मालूम मान लगती हैं ॥ २१ ॥ वायु अलग नहीं बोलती. पर देह में भर कर बोलती है। कितने ही प्राणी इच्छा लेकर जन्म को प्राप्त होते हैं ॥ २२ ॥ एना वायु का विकार है- इसका विस्तार मालम ही नहीं होता । सारे चार जीव बायु ही से बर्तते । ॥ २३ ॥ वायु स्तब्धरूप से सृष्टि धारण करता है और चंचल रूप से सृष्टि रचता है । यह बात यद्यपि न्यष्ट नहीं मालूम होती, तथापि विचार में प्रवृत्त होने से मालूम होती है ॥ २४ ॥ श्रादि से लेकर अंत तक, सब कुछ, वायु ही करता है । वायु के बिना जो कर्तुत्व हो यह चतुर लोग मुझे बतावे ! ॥ २५ ॥ सुनमाया जानपन के रूप में होती है। वही जानपन हम में भी रहता है। इन्न प्रकार, यह, कहीं गुप्त और कहीं प्रकट होकर, जगत् में वर्तता रहता है ॥२॥ जैसे पानी भाफ के रूप में गुप्त होकर फिर वरस कर प्रकट होता है 'उसी प्रकार जानपन वायु में सदा घट बढ़ कर गुप्त और प्रकट हुश्रा करना है । यह कहीं विकृत होता है और कहीं याही वायु के रूप में रहताई ॥ २७ ॥ २८ ॥ कभी कभी शरीर पर से वायु के निकलने से हाय पैर श्रादि अंग अकड़ जाते हैं । कभी कभी वायु चलने से ही खड़ी फसलें सुख जाती हैं ॥ २६ ॥ अनेक रोगों के, ऐसे अनेक वायु हैं कि, जिनसे लोगों को कष्ट होता है। आकाश में बिजली भी वायु ही के कारण कड़कड़ाती है ॥ ३० ॥ वायु ही के द्वारा संगीत शास्त्र का ज्ञान होता है और स्वरज्ञान का निश्चय होता है । संगीत शास्त्र में (दीपकल्याण -राग से) दीपक जलने का और (मेघमल्लार राग से) मेघ बरसने का चमत्कार वायु ही के कारण होता है॥३१॥वायु के लगने से भ्रम हो जाता है, वृक्षादि सूख जाते हैं, और वायु ही के द्वारा नाना प्रकार के मंत्र चलते हैं ॥ ३२ ॥ मंत्रों से देवता प्रगट होते हैं, भूत भागते हैं और मंत्र- सामर्थ्य से ही बाजीगरी और राक्षसी माया आदि के कौतुक देखने में आते हैं ॥ ३३ ॥ राक्षसों की माया-रचना, जो देवादिकों को भी नहीं मालम होती, और स्तम्भन-मोहन श्रादि नाना प्रकार के विचित्र सामर्थ्य इत्यादि, सव वायु ही के कारण से हो सकते हैं ॥ ३४ ॥ अच्छे को