पृष्ठ:दासबोध.pdf/३४९

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२६८ दासबोध। [ दशक ९ पागल और पागल को अच्छा बना देना आदि, अनेक विकार, वायु से होते हैं-कहां तक बतलावें? ॥ ३५ ॥ मंत्र से ही देवों का संग्राम होता है, मंत्र से ही पियों का अभिमान रहता है। मंत्र-सामर्थ्य की महिमा कौन जान सकता है ? ॥ ३६ ॥ संत्र से पक्षी वश किये जाते हैं; सूपक, श्वापद, आदि बाँधे जाते हैं, महा सर्प स्तब्ध हो जाते हैं और धनलाभ होता है ! ॥ ३७ ॥ अस्तु । उपर्युक विचार से बद्ध का जन्म मालूम हो जाता है और श्रोताओं की पिछली आशंका मिट जाती है ॥ ३८ ॥ नववाँ समास-ब्रह्म में ब्रह्मांड । || श्रीराम ॥ "ब्रह्म रोकने से रुक नहीं सकता, हिलाने से हिल नहीं सकता और न एक ओर हट सकता है ॥१॥ ब्रह्म भेदने से भिद नहीं सकता, छेदने से छिद नहीं सकता और अलग करने से अलग नहीं हो सकता ॥२॥ जव कि ब्रह्म में खंड नहीं पड़ता-वह अखंड है-और ब्रह्म में दूसरा कुछ गड़बड़ नहीं है, तब फिर उसके बीच में यह ब्रह्मांड कैसे घुस आया ? ॥ ३ ॥ पर्वत, पाषाण, शिला, शिखर और नाना स्थल-स्थलान्तर आदि भूगोल-रचना, परब्रह्म के बीच में किस प्रकार आई?॥४॥ब्रह्म में भूगोल है और भूगोल में ब्रह्म है । विचार करने पर एक दूसरे में प्रत्यक्ष दिखता है ॥ ५॥ ब्रह्म में भूगोल प्रविष्ट है और भूगोल में ब्रह्म भरा हुआ है । विचार करने से यह बात प्रत्यक्ष प्रत्यय' में आ जाती है ॥ ६ ॥ यह बात तो ठीक जान पड़ती हैं कि, ब्रह्म ब्रह्मांड में पैठा हुआ है; परन्तु यह समझ में नहीं आता कि, ब्रह्मांड ब्रह्म में कैसे पैठा हुआ है.॥ ७ ॥ यदि कहा जाय कि, ब्रह्मांड ब्रह्म में प्रविष्ट नहीं है तो भी ठीक नहीं जान पड़ता; क्योंकि ब्रह्म में ब्रह्मांड सब को, अनुभव से, सहज ही देख पड़ रहा है! ॥८॥ तो फिर यह कैसे हुआ ? अब विचार करके बतलाना चाहिए"-इस प्रकार श्रोताओं ने प्रश्न किया ॥६॥ अब इसका उत्तर सावधान होकर सुनिये । यहां बड़े सन्देह की बात आ पड़ी है ! ॥ १०॥ यदि कहता हूं कि, ब्रह्मांड नहीं है तो नहीं बनता; क्योंकि वह देख पड़ता है, और यदि कहता हूं कि, दिखता है, तो भी नहीं ठीक है;