पृष्ठ:दासबोध.pdf/३५

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२४ दासबोध । माँगी 1 समर्थ की वाणी सुनते ही शिवाजी का हृदय गदगद हो गया । वे विचार करने लगे कि ऐसे सत्पात्र सद्गुरु की झोली में क्या भिक्षा डाली जाय । तुरन्त ही उन्होंने एक कागज़ पर यह लिखा कि “ श्रीसमर्थ के चरणों में सब राज्य अर्पण कर दिया" इस पत्र पर मोहर करके वे बाहर आये और वह पत्र समर्थ की झोली में डाल कर साष्टांग दंडवत किया। यह देख कर समर्थ ने पूछा " क्यों शिवया, यह कैसी भिक्षा डाली ? मुट्ठी भर चावल झोली में डाले होते तो दोपहर का समय कटता ! आज क्या काग़ज़ का टुकड़ा ही समर्पण करके हमारा आतिथ्य करते हो ?" इतना कह कर जव उन्होंने वह कागज़ निकाल कर पढ़ा तव मालूम हुआ कि शिवाजी ने अपना सब राज्य अर्पण कर दिया है। समर्थ ने शिवाजी से पूछा " क्यों शिक्वा, राज्य तो तुमने हमको दे दिया, अब तुम क्या करोगे?" शिवाजी ने हाथ जोड़ कर विनती की, " आपकी चरण-सेवा में रह कर समय व्यतीत करेंगे।" यह सुन कर समर्थ हँसे और कहा, "वावा! जो जिसका काम है वह उसीको करना उचित है। ब्राह्मणों को जप-तप करके ज्ञान सम्पादन करना चाहिए और क्षत्रियों को क्षात्रधर्म ही का पालन करना चाहिए । इस प्रकार अपना अपना कर्तव्य करते रहने से ही मोक्ष-प्राप्ति होती है । अपना अपना कर्म यथोचित रीति से पूर्ण करने ही में जन्म की सार्थकता है । पूर्व समय में रामचन्द्र ने भी अपने कुलगुरु वसिष्ठ को आधा राज्य अर्पण कर दिया था। उस समय वसिष्ठजी ने श्रीराम को योगवासिष्ठरूप से नीति, न्याय और धर्म का उपदेश किया। और उनका राज्य उन्हें लौटा दिया । राजा जनक ने भी याज्ञवल्क्य को राज्य अर्पण किया था। उस समय उन्होंने जनक को राजधर्म का उपदेश किया । शिवबा ! हम वैरागियों को राज्य की क्या ज़रूरत है ? कदाचित् हमने अंगीकार भी कर लिया तो उसके सँभालने के लिए प्रधान की जरूरत है। प्रधान तूही वन; और राज्य हमारा समझ कर उसका प्रवन्ध कर" यह उपदेश सुनते ही शिवाजी का अन्तःकरण गद्गद हो गया। जब उन्होंने समझा कि, अव विना राज्य लौटा लिये और कोई उपाय नहीं है तव उन्होंने समर्थ से प्रार्थना की:-" अव कृपापूर्वक आप अपनी पादुका मुझे दीजिए। उन्हींको स्थापन करके मैं आपके प्रधान की तरह राजकाज करूँ गा।" समर्थ ने यह प्रार्थना स्वीकार की। उसी समय से शिवाजी महाराज ने अपने राज की निशानी, अर्थात् झंडा भी भगवे रंग का कर दिया । मराठों का “ भगवा झंडा" इतिहास में प्रसिद्ध ही है। . शिवाजी महाराज जब सामनगढ़ का किला बनवा रहे थे तब एक दिन किले के काम में लगे हुए सैकड़ों आदमियों को देख कर उनके मन में यह विचार आया कि मैं इतने मनुष्यों का पालन कर सकता हूँ, इसलिए मुझे धन्य है। इस विचार के साथ ही साथ शिवाजी के मन में एक प्रकार का अभिमान भी आगया । इतने ही में अकस्मात् समर्थ वहाँ जा पहुँचे । उन्हें देख कर शिवाजी ने दण्डवत्-प्रणाम किया और अकस्मात् पधारने का कारण पूछा । समर्थ ने कहा कि “ तू श्रीमान् है । हजारों मनुष्यों का पालनकर्ता है; इसीलिए मैं तेरा कारखाना देखने आया हूँ।" शिवाजी ने कहा कि यह सब आप ही की