पृष्ठ:दासबोध.pdf/३५६

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अन्तःकरण एक है। २७५ । संग का नए बतला ही चुके हैं ॥ १४॥ श्रतएव, यह सिद्ध है कि, लंगाना में अन्तःकरण सब का एक ही है । सम्पूर्ण जीवों में जानपन गाव ही है ॥ १५॥ दृष्टि का देखना, जीभ का चाखना; और सुनना, हना, बास लेना, आदि वाते सव में एक ही सी है ॥ १६ ॥ पशु, पक्षी, कीड़ा. बीटी, आदि जितने जीव जगत् में निर्माण हुए हैं उन सब में मंग-शनि एक दी है ॥ १७ ॥ सब के लिए जल शीतल है, सब के लिप अनि प्रखर है और सब के लिए अन्तःकरण की संज्ञा एक ही है ॥९॥ यच्छा लगना या बुरा लगना देह-स्वभाव का कारण है; पर यह बात अन्तःकरण ही के योग से मालूम होती है ॥ १६ ॥ सब का अन्तःकरण एक है । यह बात बिलकुल निश्चय है । इसका कौतुक सब जानते हैं ॥२०॥ इतने से आशंका मिट जाती है। अब शंका करने की जनरत नहीं है । जितना कुछ जानना है वह सब अन्तःकरण का धर्म जान कर जीव चारा खाते हैं, जान कर डरते हैं; छिपते हैं और जान कर दो प्राणिमात्र भग जाते हैं ॥ २२॥ कीड़ा, चीटी से लेकर और ब्रह्मा विष्णु महेश तक, अन्तःकरण सब का एक है। इस बात का कौतुक अनुभव से जानना चाहिए ॥ २३ ॥ वड़ा हो या छोटा हो; है वह अग्नि ही योड़ा हो चाहे बहुत हो; है बह पानी ही-इसी तरह छोटा हो चाहे बड़ा हो, प्राणी अन्तःकरण हो से जानता है ॥ २४ ॥ कहीं न्यून है, कन्हीं अधिक है-परन्तु जिन्स की बानगी एक ही है। संज्ञारहित कोई भी जंगम प्राणी नहीं है ॥ २५॥ संज्ञा अन्तःकरण को कहते हैं और नन्तःकरण विष्णु का अंश है । इस प्रकार विष्णु पालन करता है (अर्थात् अन्तःकरणरूप होकर सब में रहना उसका पालन करना है) ॥ २६ ॥ जहां प्राणी संज्ञारहित हुआ, कि बस फिर वह मर जाता है और संज्ञारहित होना तमोगुण का लक्षण है । इस प्रकार तमोगुण से रुद्र संहार करता है ॥ २७ ॥ कुछ संज्ञा और कुछ वे संज्ञा होना रजो- गुण का लक्षण है; और इसीके कारण प्राणी जन्म पाते हैं ॥२८॥ जानपन से सुख होता है और अनजानपन से दुख होता है, तथा उत्पत्तिगुण से (अर्थात् जान-अनजान के मिश्रण से) सुख-दुख दोनों अवश्य भोगने पड़ते हैं ॥ २६ ॥ जानपन और अनजानपन को मिली हुई बुद्धि ही इस देह में ब्रह्मा है। वही वास्तव में उत्पत्तिकर्ता है ॥३०॥ यह उत्पत्ति- स्थिति और संहार का विचार, प्रसंग आ जाने के कारण, बता दिया; पर इसका निश्चय अनुभव से करना चाहिए ॥३१॥