पृष्ठ:दासबोध.pdf/३५७

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२७६ दासबोध। [दशक १० दूसरा समास-उत्पत्ति के विषय में शंका । || श्रीराम ।। श्रोता आशंका करता है। स्वामी ने ऊपर जो विचार बताया उसमें तो विष्णु का अभाव देख पड़ता है-विष्णु ही का क्यों ? उसमें तो ब्रह्मा- विष्णु और महेश किसीको भी ठौर नहीं रहता ॥१॥ उत्पत्ति, स्थिति और संहार, ब्रह्मा, विष्णु और महेश कैसे करते हैं, सो कुछ समझ में नहीं आता ॥२॥ आपके इस विचार में उत्पत्तिकर्ता चतुर्मुख ब्रह्मा का प्रत्यय नहीं होता और पालनकर्ता चतुर्भुज विष्णु भी सिर्फ सुना ही जाता है ॥३॥ यह भी प्रत्यय में नहीं आता कि, महेश कैसे संहार करता है। पुराणों में जो लिंगमहिमा कही है वह भी विपरीत हुई जाती है ! ॥४॥ यह तो मालूम होना चाहिए कि, मूलमाया को किसने बनाया । तीनों देवों का रूप तो उसके पीछे हुया है ॥ ५ ॥ मूलमाया लोक-जननी है, उससे गुणक्षोभिणी माया उत्पन्न हुई है और गुणक्षोभिणी से त्रिगुणा- त्मक त्रिदेव हुए हैं ॥ ६ ॥ ऐसा शास्त्रकारक बतलाते हैं और प्रवृत्ति, या परम्परा, बतलानेवाले लोग भी ऐसा ही कहते हैं, पर अनुभव का प्रश्न मा जाने पर कितने ही लोग घबड़ा जाते हैं ! ॥७॥ इस लिए उनसे पूछते नहीं बनता; और वे समझा भी नहीं सकते तथा बिना समझे सारे प्रयत्न व्यर्थ हैं ॥ ८ ॥ यदि अनुभव विना कोई अपने को वैद्य कहलाये और यों ही धरा-उठाई करे तो उस मूर्ख की प्राणिमात्र निंदा करते हैं ॥ ३ ॥ वैसा ही विचार यह भी है । वास्तविक निर्धार अनुभव . से करना चाहिए । अनुभव न होने से गुरु-शिष्य दोनों में अंधकार रहता है ॥ १० ॥ अच्छा, लोगों को क्या कहा जाय ? वे जो कुछ कहते हैं, ठीक ही है; पर अब स्वामी इस बात को विशद करके बत- लावें ॥११॥ यदि कहा जाय कि, देवों ने माया बनाई है तो देवी के रूप माया ही में आते हैं और यदि कहां जाय कि, माया ने माया बनाई है तो यह भी नहीं हो सकता, क्योंकि माया तो कुल एक ही है ॥ १२ ॥ और यदि कहा जाय कि, भूतों ने बनाई है तो वह भूतों की ही बनी हुई है और यदि कहें कि, परब्रह्म ने माया बनाई है तो ब्रह्म में कतृत्व ही नहीं है- वह बना कैसे सकता है ? ॥ १३ ॥ और यदि कहा जाय कि, माया सच्ची होगी तो ब्रह्म में कर्तृत्व लगता है और यदि माया को मिथ्या