पृष्ठ:दासबोध.pdf/३५९

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२७८ दासबोध। [ दशक १० ॥४॥ पृथ्वी से जो पत्थर हुए वही देव कहलाये । पाषाण-देवों के विषय में लोगों के बहुत अनुभव हैं ॥५॥ यद्यपि लोग पत्थर, मिट्टी, इत्यादि को देवता मानते हैं, पर वास्तव में सम्पूर्ण देवता वायु मै रहते हैं ॥ ६ ॥ देव, यक्षिणी, कात्यायनी, चामुंडा, जाखणी, मानविणी, आदि नाना शक्तियां, भिन्न भिन्न देशों के अनुसार, अनेक स्थानों में रहती हैं। ॥ ७॥ इनके सिवाय कितने ही देवता पुरुपवाचक नामों से, तथा भूत ' और 'देवता, ' आदि अनेक नपुंसक नामों से भी रहते हैं ॥८॥ देव, देवता, दैवत, भूत, आदि पृथ्वी में असंख्य हैं; परंतु ये सब वायुरूप में कहे जाते हैं ॥ ६॥ सदा वायुरूप रहना, प्रसंग श्रा पड़ने पर नाना देह धरना, गुप्त और प्रगट होना, आदि इन सब का काम है ॥ १० ॥ वायुस्वरूप से देवता विचरते हैं, वायु में चेतना, वासना और वृत्ति आदि नाना रूपों से जगज्ज्योति रहती है ॥११॥ आकाश से जो वायु हुआ है, वह दो प्रकार का है। ध्यान पूर्वक सुनिये ॥ १२ ॥ एक साधा- रण हवा, जिसको सब लोग जानते हैं और दूसरी वह है जो वायु में जगज्ज्योति के रूप में रहती है-उसी जगज्ज्योति के रूप में देवी-देवताओं की अनन्त मूर्तियां रहती हैं ॥ १३ ॥ वायु यद्यपि बहुत विकार-युक्त है; तथापि वह कुल दो ही प्रकार से विभाजित है । अब, श्रोताओं को तेज का विचार सुनना चाहिए ॥ १४ ॥ वायु से तेज हुआ है, जो उष्ण, शीतल और प्रकाशित है। तेज का रूप भी दो प्रकार का है, सुनिये ॥१५॥ एक तेज उष्ण है और दूसरा शीतल है । उष्ण से प्रकाशवान् और दैदीप्यमान सूर्य, सर्वभक्षक अग्नि और विद्युल्लता हुई ॥ १६ ॥ शीतल तेज से आप, अमृत, चन्द्र, तारा, और हिम इत्यादि हुए हैं। अब श्रोता लोग सावधान होकर आगे का वृत्तान्त सुनें ॥ १७ ॥ तेज भी यद्यपि बहुत विकारयुक्त है; पर दो ही प्रकार का कहा है। आप भी दो ही प्रकार का कहा है:-आप और अमृत ॥ १८॥ अब पृथ्वी का विचार सुनिये:-इसका एक प्रकार तो पाषाण और मिट्टी है तथा दूसरा प्रकार सुवर्ण, पारस और नाना रत्न प्रादि हैं ॥ १६ ॥ इस वसुंधरा का नाम है बहुरत्ना"! कौन खोटा है और कौन खरा है, सो सब विचार करने से मालूम होता है ॥ २०॥ अब यह मुख्य आशंका रह गई कि, मनुष्य कहां से हुए । इसे भी सावधान होकर सुनिये ॥ २१ ॥