पृष्ठ:दासबोध.pdf/३६१

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२८० दासबोध। [ दशक १० कहते हैं ॥ १६ ॥ वही ईश्वर जव गुणयुक्त होता है तब उसके, गुणों के अनुसार, तीन भेद होते हैं, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश कहते हैं ॥ १७ ॥ सत्व, रज, तम, ये तीन गुण हैं। इनका वर्णन पीछे हो चुका है ॥ १८ ॥ ज्ञाता विष्णु भगवान् है, ज्ञाता-अज्ञाता चतुरानन ब्रह्मा है और.. अज्ञाता पंचानन महेश है, जो अत्यंत भोला है ॥ १६ ॥ त्रिगुण आपस में सने हुए हैं-वे अब अलग कैसे हो सकते हैं ? पर जो थोड़े बहुत भासते हैं वे बतलाने पड़ेंगे ॥ २०॥ पहले वायुस्वरूप सूलमाया में सत्वगुणा- त्मक विष्णु का स्वरूप भी वायुस्वरूप ही होता है, इसके बाद वह रूप देहधारी चतुर्भुज बनता है ॥ २१ ॥ उसी प्रकार पीछे से ब्रह्मा और महेश भी देह धरते हैं। उन्हें गुप्त या प्रगट होते देर नहीं लगती ॥ २२ ॥ अब, प्रत्यक्ष प्रतीति कर लो कि, जब मनुष्य ही गुप्त और प्रगट होते हैं; तब फिर देवताओं के लिए क्या कहना है-वे तो स्वयं सामर्थ्यवान् है ॥ २३ ॥ देव, देवता, भूत और दैवत इत्यादि में खूब बढ़ा चढ़ा हुआ सामर्थ्य होता है । उन्हींकी तरह राक्षसों में भी सामर्थ्यकला होती है ॥ २४ ॥ झोटिंग वायुस्वरूप रहता है और जल्दी से खड़खड़ चलता है और नारियल या छोहारे श्रादि अकस्मात् डाल देता है ! ॥ २५ ॥ यदि सब का अभाव मान लोगे तो भी नहीं हो सकता; क्योंकि यह बात बहुत से लोगों को मालूम है और अपने अपने अनुभव के अनुसार सारे लोग जानते हैं ॥ २६ ॥ मनुष्य जब अनेक वेष धरते हैं; अनेक पुरुष परकाया में प्रवेश करते हैं; तब फिर वह स्वयं परमात्मा जगदीश ऐसा क्यों नहीं कर सकेगा? ॥ २७ ॥ इस प्रकार वायुस्वरूप से देहरूप होकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश बनते हैं और इसके बाद फिर वही पुत्रपौत्रों में विस्तृत होते हैं ॥ २८ ॥ वे अंतःकरण में स्त्रियों की कल्पना करते हैं, कल्पना करते ही वे बन जाती हैं परन्तु उनसे सन्तानोत्पत्ति या प्रजोत्पत्ति कमी नहीं होती ॥ २६ ॥ वे इच्छामात्र ही से पुत्रों की भी कल्पना कर लेते हैं । जब जब वे कल्पना करते हैं तब तव पुत्र बन जाते हैं । इसी प्रकार हरि, हर, विधि आदि बर्तते रहते हैं ॥ ३० ॥ उसके बाद ब्रह्मा सृष्टि की कल्पना करता है और उसकी इच्छा के अनुसार सृष्टि बन जाती है, तथा इसी तरह ब्रह्मा जीवसृष्टि का निर्माण करता है ॥ ३१॥ नाना प्रकार के प्राणियों की कल्पना कर ली जाती है-वे इच्छा के अनुसार निर्मित हो जाते हैं । अंडज, जारज, आदि सभी जीव जोड़े-सहित पैदा होते हैं ॥ ३२ ॥ जो स्वेद से होते हैं वे स्वेदज प्राणी कहलाते हैं और जो वायु से होते हैं वे उद्भिज कहलाते हैं ॥ ३३ ॥ इसी प्रकार