पृष्ठ:दासबोध.pdf/३६३

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२२२ दासबोध। [ दशक १० पाँचवाँ समास-पंचप्रलय । ॥ श्रीराम ॥ अब प्रलय का लक्षण सुनियेः-पिंड (शरीर) में दो प्रलय होते हैं; एक निद्रा और दूसरा मरण ॥ १॥ तीनों देहधारक मूर्तियां जब निद्रा संपादन करती है तब उसे ब्रह्मांड का निद्राप्रलय कहते हैं॥२॥जब तीनों मूर्तियों का और ब्रह्मांड का भी अन्त हो जाता है तब उसे ब्रह्मप्रलय कहते हैं ॥ ३ ॥ कुल चार प्रकार के प्रलय हैं, जिनमें से दो पिंड में हैं और दो ब्रह्मांड में हैं और पांचवाँ सब से बड़ा प्रलय विवेक का है ॥४॥ ऐसे ये पांचो प्रलय क्रमशः बतला दिये; अब इन्हें इस प्रकार बतलाता हूं कि, जिससे अनुभव में आ जायें ॥ ५ ॥ जब निद्रा का संचार होता है तब जागृति के सारे व्यापार चले जाते हैं और अकस्मात् शरीर में स्वप्नावस्था या सुषुप्ति अवस्था आ जाती है ॥ ६ ॥ इसी जागृति के क्षय हो जाने का नाम निद्राप्रलय है । अव मृत्यु- प्रलय का हाल सुनो । वह देहान्त-समय में होता है ॥ ७ ॥ देह में जब रोग बढ़ते हैं अथवा जब कोई कठिन प्रसंग आ पड़ता है तब पंचप्राण अपना व्यापार छोड़ कर चले जाते हैं ॥८॥ उस समय मन भी चला जाता है; केवल शरीर रह जाता है । यही दूसरा प्रलय है ॥ ६ ॥ तीसरा प्रलय वह है कि, जब ब्रह्मा सो जाता है, मृत्युलोक लय हो जाता है तथा प्राणिमात्र का सारा व्यापार बन्द हो जाता है ॥१०॥ उस समय प्राणियों के सूक्ष्मांश वायुचक्र में वास करते हैं। बहुत सा समय व्यतीत हो जाने पर, तब कहीं, ब्रह्मा में जागृति आती है ॥ ११ ॥ ब्रह्मा फिर सृष्टि रचता है-विसंचित जीवों को फिर से संचित करता है। और जब उसकी आयु की भी सीमा समाप्त हो जाती है तब ब्रह्म- प्रलय होता है:- ॥ १२ ॥ सौ वर्ष तक पानी नहीं बरसता, इस कारण प्राणी भर जाते हैं। पृथ्वी असंभाव्य और अमर्यादित रीति से फट जाती है ॥ १३ ॥ सूर्य बारह कला करके तपने लगता है-इस कारण पृथ्वी जलने लगती है और अग्नि के पाताल में पहुँचते ही शेष भी विष वमन करता है॥१४॥आकाश में सूर्य की ज्वालाएं भभकती हैं। पाताल में शेष विष वमन करता है- इससे भूगोल दोनों ओर जलता है-ऐसी दशा में पृथ्वी का बचाव कहां