पृष्ठ:दासबोध.pdf/३६६

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समास ] भ्रम-निरूपण । बोई हुई नमभ कर दुश्चित्त होना अथवा अपने ही को स्वयं भूलना- उसका नाम भ्रम है ॥ २८ ॥ किसी पदार्थ का भूल जाना, अथवा सीखा हुना भूल जाना अथवा स्वमदुःख से बबड़ाना भ्रम है ॥ १६ ॥ दुश्चिन्ह अपवा अपशकुन या मिथ्या वार्ता ले मनोभंग होना अथवा किसी पदार्थ को देख कर ठिटकना भ्रम है ॥२०॥ वृक्ष या काठ देख कर मन में भूत पाने की आशंका होना, कुछ भी न होकर भय करना-इसका नाम मन है ॥ २६ ॥ पानी को कांच समझकर उसमें गिरना, अथवा दर्पण में सभा का दूसरा विम्ब देख कर उसमें घुसना या द्वार भूल कर इधर उधर भवकना भ्रम है ॥ २२ ॥ कुछ का कुछ ही मालूम होना, कुछ बतलाने से और ही कुछ समझना और कुछ देख कर और ही कुछ मन में लाना भ्रम है ॥ २३ ॥ इस समय जो जो देते हैं सो सो आगे पाते हैं अथवा मरे हुए मनुप्य भोजन करने आते है-यह समझना भ्रम है ॥ २४ ॥ इस जन्म का अगले जन्म में पाने की आशा रखना अथवा मनुष्य के नाम में प्रीति लगाना भ्रम है ॥ २५ ॥ मन में यह बात अखंड जम जाना कि, मरा हुश्रा मनुष्य स्वप्न में आकर हम से कुछ मांगता है, भ्रम है ॥ २६ ॥ सब को मिथ्या बतला कर, फिर भी धन-दौलत पर मन दौड़ाना अयवा ज्ञाता बन कर भी वैभव पर भूलना भ्रम है ॥ २७ ॥ कर्मठ- पन से ज्ञान को भुलाना अथवा ज्ञातापन से बलात् भ्रष्ट होना अथवा किसी मर्यात का भी उल्लंघन करना भ्रम है ॥ २८ ॥ देहाभिमान, कर्मा- भिमान, जात्याभिमान, कुलाभिमान, ज्ञानाभिमान और मोक्षाभिमान होने का नाम भ्रम है ॥ २६ ॥ न्याय न मालूम होना, किया हुआ अन्याय न मालुम होना, और व्यर्थ ही अभिमान बढ़ाना भ्रम है ॥३०॥ कोई पिछली बात बिसर जाना, अगला विचार न सूझना और अखंड रीति से गर्व में आ जाना भ्रम है ॥ ३१ ॥ प्रतीति बिना ओपधि लेना, प्रतीति बिना पथ्य करना और प्रतीति विना ज्ञान बतलाना भ्रम है ॥३२॥ फल जाने बिना कोई प्रयोग करना, ज्ञान के बिना योग करना और व्यर्थ शारीरिक भोग भोगना भ्रम है ॥ ३३ ॥ ब्रह्मा भाग्य में जो कुछ लिखता है उसे छठी के दिन, छठी माता पढ़ जाती है-इस प्रकार की बातों को भ्रम कहते हैं ॥ ३४॥ इसी प्रकार से अज्ञान जनों में खूब भ्रम पैठा हुआ है। यहां मैंने साधारण तौर पर जानने के लिए, संक्षिप्त रीति से, बतलाया है ॥ ३५ ॥ जब सारा विश्व स्वाभाविक ही भ्रमरूप है तब फिर क्या कहना है ?