पृष्ठ:दासबोध.pdf/३६७

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'२८६ दासबोध। [ दशक १० निर्गुण ब्रह्म छोड़ कर और सब भ्रमरूप है ।। ३६ ॥ ज्ञानी संसार से अलग होता है; अतएव, गत ज्ञानी के चमत्कार भी भ्रम ही समझना चाहिए ॥ ३७ ॥ यहां पर यह एक आशंका उठती है कि, ज्ञाता की समाधि जो पूजी जाती है उससे कुछ फल होता है या नहीं? ॥ ३८ ॥ उसी प्रकार अवतारी पुरुप यद्यपि अब नहीं हैं; पर उनका सामर्थ्य बहुत देखा जाता है; तो क्या वे वासना में फंसे हुए हैं ? ॥ ३६॥ यह आशंका उठती है; अब समर्थ को यह आशंका मिटानी चाहिए। इतने ही में भ्रम की कथा भी समाप्त हुई ॥ ४० ॥ सातवाँ समास-साधु चमत्कार नहीं करते । ॥ श्रीराम ॥ श्रोता लोग आशंका करते हैं कि, जब अवतारी पुरुप, ज्ञानी और संत लोग, बिलकुल सुता ही हो गये तब फिर उनका सामर्थ्य आज तक कैसे चला जाता है ? इस पर वक्ता कहता है कि, यह प्रश्न तो बहुत अच्छा किया है; अब इसका उत्तर सुनिये:-॥ १॥२॥ ज्ञानी मुक्त हो जाते हैं और पीछे उनका सामर्थ्य भी चलता रहता है; पर वे वासना धर कर नहीं पाते ॥ ३॥ लोगों को जो चमत्कार मालूम होता है और लोग जो उस चमत्कार को सच्चा मानते हैं, इसका विचार चतुरों को करना चाहिए ॥ ४॥ मर जाने के बाद की तो बात ही जाने दो, जीते रहने पर न जाने कितने चमत्कार लोगों में हुआ करते हैं। इस प्रकार की तात्कालिक प्रतीति प्रत्यक्ष देख लो ॥ ५॥ वह तो स्वयं एक जगह से गया नहीं और लोगों ने प्रत्यक्ष उसे दूसरी जगह देखा-ऐसा यह चम- त्कार हुआ; अब इसे क्या कहें* ? | ॥ लोगों का अपना भाव ही इसका कारण है, भाविकों को देव यथार्थ है-भाव के बिना सारी कल्पना व्यर्थ और कुतर्क से भरी है ॥ ७ ॥ अपनी प्यारी वस्तु स्वप्न में जब कोई देखता है तब क्या वास्तव में वह वस्तु वहां से आ जाती है ? यदि कहा जाय कि नहीं, उसकी याद आती है-अच्छा, अगर याद अाती है तो फिर दूसरे द्रव्यों का रूप क्यों दिखता है; केवल उसीकी जान पड़ता है कि यह पद्य उदाहरणस्वरूप किसी साधु के चमत्कार को अनुलक्ष करके लिखा गया है।