पृष्ठ:दासबोध.pdf/३६८

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साधु चमत्कार नहीं करते। २८७ यादवन में भी क्यों नहीं आती ! ॥८॥ अतएव, यह सब अपनी कल्पना मन में नाना पदार्य देख पड़ते हैं। परन्तु वास्तव में कुछ नहीं है और नयाद ही पाते हैं ॥ ॥ इतने से यह अाशंका मिट जाती है पाना के जन्म की कल्पना मत करो। यदि समझ में न आवे तो विवेक से अच्छी तरह समझ लो ॥ १०॥ शानी मुक्त हो जाते हैं और उनका नाम चलता रहता है, क्योंकि वे पुण्यमार्ग से चलते हैं ॥ ११ ॥ इल लिए. पुण्यमार्ग से चलना चाहिए, ईश्वर का भजन बढ़ाना चाहिए और न्याय छोड़ कर, अन्याय मार्ग से, न जाना चाहिए ॥ १२ ॥ अनेक गुन पुरश्चरण करना चाहिए, खूब तीर्थाटन करना चाहिए और वैराग्य- वल से अपने सामर्थ्य को बढ़ाना चाहिए ॥ १३ ॥ यदि परमात्मा में विश्वास हो तो ज्ञानमार्ग से भी सामर्थ्य बढ़ सकता है। पर ऐसा न करना चाहिए कि, जिससे शान्ति भंग हो जाय ॥ १४ ॥ गुरु या ईश्वर, दो में से एक में, अथवा दोनों में, श्रद्धा अवश्य रखना चाहिए, क्योंकि श्रद्धा कं दिना सब व्यर्थ है ॥ १५ ॥ जो ज्ञाता लोग, निर्गुण का ज्ञान हो जाने पर, नगुण की ओर से ध्यान हटा लेते हैं वे दोनों ओर से जाते हैं ॥ उन ज्ञाताओं में वस्तुतः न भक्ति ही होती है और न ज्ञान ही होता ई-सिर्फ अभिमान ही अभिमान बीच में आ जाता है । अतएव, जप और ध्यान कभी न छोड़ना चाहिए ॥ १७॥ जो सगुण-भजन छोड़ देता है, वह चाहे ज्ञानी भी हो, तो भी उसे यश नहीं मिलता। इस लिए सगुण भजन छोड़ना ही न चाहिए ॥ १८ ॥ निष्काम बुद्धि से जो भजन किया जाता है उसकी तुलना तीनों लोक में किसीसे नहीं की जा सकती। परन्तु, सामर्थ्य विना निष्काम भजन नहीं हो सकता ॥१६॥ सकाम भजन से फल मिलता है और निष्काम से भगवान् मिलता है ! अत्र कहो, कहां फल और कहां भगवान् ! ओः बड़ा अन्तर है ॥ २० ॥ ईश्वर के पास नाना फल हैं और फिर फल तो भगवान् से मनुष्य को दूर करता है-इस कारण परमेश्वर को निष्काम ही भजना चाहिए ॥ २१ ॥ निष्काम भजन का फल अद्भुत है-उससे असीम सामर्थ्य बढ़ता है-ऐसी दशा में विचारे फलों की क्या गिनती! ॥ २२॥ भक्त जो वात मन में धरता है वह ईश्वर स्वयं ही करता है-भक्त को किसी बात की चिंता नहीं करनी पड़ती ॥२३॥ दोनों सामर्थ्य एक होने पर काल भी कुछ नहीं कर सकता, फिर औरों की क्या गिनती और सब तो वहां कीड़े की तरह हैं ! ॥ २४ ॥ इस लिए निष्काम भजन, और साथ ही साथ ब्रह्मज्ञान, के सामने तीनों लोक की सम्पदा कोई चीज नहीं ॥२५॥