पृष्ठ:दासबोध.pdf/३७

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दासबोध लिखी जाय? जिस महत्कार्य के लिए श्रीरामदासखामी ने अपना सारा पुण्य खर्च किया अपना सारा सामर्थ्य लगाया—वह उनकी इच्छानुसार श्रीरामचन्द्रजी महाराज ने पूरा भी किया । यह बात सिंहावलोकन से प्रकट हो जायगी। समकालीन उपदेशक । श्रीरामदासस्वामी ने अपने जीवन-काल में खधर्म-स्थापना और समाजहित का जो अलौकिक कार्य महाराष्ट्र में किया उसमें उनके समय के अनेक उपदेशक गण, अर्थात् साधुसंत और कवि लोग, भी सहायक थे। उस समय महाराष्ट्र-समाज को अपनी उन्नति करने के लिए सनातनधर्म की व्यापकता, जातिवन्धन की अनिष्टता, कर्तव्यपरायणता, एकता आदि जिन गुणों की आवश्यकता थी उनकी शिक्षा अनेक साधु-संत और कविजन अपने वीव और उपदेश-द्वारा दे रहे थे। पहले पहल सब धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत-भाषा में थे। इससे विद्वान् और पण्डित लोगों के सिवा और कोई लाभ नहीं उठा सकते थे । परन्तु समर्थ-कालीन सब साधुसंत और कविजनों ने अपना उपदेश मराठी भाषा ही में करना आरम्भ किया। इस कारण यद्यपि उन लोगों को कुछ अहंकारी पुरुपों-द्वारा कष्ट सहना पड़ा तथापि उनके मातृ-भाषा-प्रेम से बहुजन-समाज का असाधारण हित हुआ । यूरप में जिस प्रकार लूथर ने बाइबल का अंगरेजी भाषा में अनुवाद करके धर्मक्रान्ति का वीज चोया, उसी प्रकार महाराष्ट्रीय उपदेशकों ने (विशेषतः रामदासखामी के समय के और उनके वाद के उपदेशकों ने) संस्कृत में पिछा हुआ सारा ज्ञान-भण्डार मराठी-द्वारा सर्वसाधारण लोगों को सुगम और सुलभ कर दिया । सन् १८९५ की पूना सार्वजनिक सभा की त्रैमासिक पत्रिका में इस विषय में यह लिखा है:- The Saints and Prophets addressed the people both in specch and writing in their own vernacular and bold- ly opened the hitherto hidden and unknown treasures to all and sundry men and women, Bralımans and Shudras alike........ These early Marathi writers knew that modern India, after Budhistic revolution, was less influenced by the Vedas and Shastras, than by the Ramayana and Mahabharat, the Bhagawat Puran and the Gita, and these latter works were translated and made accessible to all. इस उपाय से महाराष्ट्र में धर्मजागृति होकर लोग अपने समाज और देश का हित सम्पादन करने में समर्थ हुए । इस प्रकार, समर्थ के समय में, जिन महात्माओं ने स्वधर्म, स्वजन और स्वभाषा की सेवा की है उनमें से कुछ लोगों का संक्षिप्त वृत्तान्त देना आवश्यक .