पृष्ठ:दासबोध.pdf/३७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६० दासबोध। [ दशक १० वह अधम है और जो असत्य मानता हो उसे यथार्थ में पापियों का सिरताज समझना चाहिए ! ॥२५॥ यहां अब वोलने की सीमा हो चुकी (इससे अधिक अब क्या कहा जाय?) न जानने से परमात्मा नहीं जाना जाता, इसमें कुछ भी असत्य नहीं है; हे परमात्मा ! तू ही जानता है ! ॥ २६ ॥ मेरी उपासना की विशेपता यही है कि, सत्य ज्ञान बतलाया जाय; क्योंकि मिथ्या कहने से प्रभु पर दोप आता है ॥ २७ ॥ इस लिए सत्य ही कहते हैं ! कर्ता को पहचानना चाहिए और माया की उत्पत्ति का कारण खोजना चाहिए ॥ २८ ॥ वही बतलाया हुआ निरूपण फिर अच्छी तरह से बतलाया गया है-श्रोता लोगों को सावधान होकर सुनना चाहिए ॥ २६ ॥ जहां सूक्ष्म निरूपण ा पड़ता है वहां कहा हुआ ही फिर से कहते हैं, क्योंकि श्रोता लोगों की समझ में वह बातें अच्छी तरह आ जाना चाहिए ॥ ३०॥ वास्तव में प्रतीति को सम्हालने से जनरूढ़ि उड़ जाती है; इस लिए (अर्थात् जनरूढ़ि की रक्षा करते हुए प्रतीति कराने के लिए) यह खटपट करनी पड़ती है ॥ ३१ ॥ यदि जनरूढ़ि ही के अनुसार बतलावे तो प्रतीति का समाधान डूब जाता है, और यदि प्रतीति-समाधान की रक्षा की जाय तो जनरूढ़ि उड़ जाती है! ॥३२॥ इस प्रकार का दोनों ओर संकट उपस्थित होता है-इसी कारण बताया हुआ ही फिर बताना पड़ता है। अच्छा, अब दोनों (जनरूढ़ि और प्रतीति-समाधान ) की रक्षा करके यह कूटक हल किये देता हूं ॥ ३३ ॥ अतएव, अब जनरूढ़ि और प्रतीति-प्रमाण, दोनों की रक्षा रख कर किया हुआ निरूपण, परम चतुर श्रोता लोगों को मनन करना चाहिए ॥३४॥ नववाँ समास-पुरुष और प्रकृति । ॥ श्रीराम ।। आकाश में जैसे वायु निर्माण होता है वैसे ही ब्रह्म में मूलमाया होती है। इसके बाद फिर उस वायुरूप मूलमाया से त्रिगुण और पंच। भूत होते हैं ॥१॥ वटबीज में बहुत बड़ा पेड़ है; पर बीज फोड़ कर देखने से वह दिख नहीं पड़ता । वास्तव में नाना वृक्षों का समूह बीज, ही से होता है ॥२॥ उसी प्रकार यह मूलमाया भी बीजरूप है-इसीसे यह सारा विस्तार हुआ है। उसका स्वरूप खोज कर अच्छी तरह