पृष्ठ:दासबोध.pdf/३७५

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दासबोध। [ दशक १० मध्यमा कहते हैं ॥ २४ ॥ वह युक्ति, बुद्धि, मति, धारणा, सावधानता, नाना विचार, भूत, भविष्य, वर्तमान-इन सब को प्रगट कर दिखाती है ॥ २५ ॥ वह जागृति, स्वप्न, सुषुप्ति, तुर्या, ताटस्था, इत्यादि अवस्था तथा सुख-दुख और मानापमान सब जानती है ॥ २६ ॥ वह परम कठिन और कृपालु है; वह परम कोमल और स्नेहाल है तथा वह परम क्रोधी, और असीम प्रेम करनेवाली है ॥ २७ ॥ शान्ति, क्षमा, विरक्ति, भक्ति, अध्या- त्मविद्या, सायुज्यमुक्ति, विवेक और सहजस्थिति उसीके द्वारा प्राप्त होती है ॥ २८ ॥ पहले पुरुषनाम बतलाये, उसके बाद स्त्रीनामों का निरूपण किया, अब उस चंचल के नपुंसकपाम सुनना चाहिए:- ॥ २६ ॥ जानना, अंतःकरण, चित्त, श्रवण, मनन, चैतन्य, जीवित, भाला, जाना, इत्यादि सुचित्त होकर देखना चाहिए ॥ ३० ॥ उसको सैपन, तूपन, जानपन, ज्ञातापन, सर्वज्ञपन, जीवपन, शिवपन, ईश्वरपन और अलिप्तपन कहते हैं ॥ ३१॥ ऐसे नास बहुत से हैं; पर वह जगज्ज्योति है एक ही । उस सर्वान्त- रात्मा को वही जानते हैं जो विचारवन्त हैं ॥ ३२॥ श्रात्मा, जगज्ज्योतिः और सर्वज्ञता, तीनों को एक ही जानना चाहिए; इसीको अंतःकरण या ज्ञप्ति, निश्चयपूर्वक समझना चाहिए ॥३३॥ पदार्थों के और पुरुष, स्त्री तथा नपुंसक नामों के ही ढेर लगे हुए हैं, तब फिर सृष्टि-रचना के नाम और कहां तक बताये जायें ? ॥ ३४ ॥ सब का चालक एक वही है। वह अन्तरात्मा अनन्त ब्रह्मांड का व्यापार चलाता है। चीटी से लेकर ब्रह्मा-विष्णु-महेश, इत्यादि देवता तक, सब उसीके द्वारा वर्तते हैं ॥ ३५॥ उस अन्तरात्मा को यहां थोड़े ही में जान लेना चाहिये। नाना प्रकार का तमाशा सब उसीमें है ! ॥ ३६॥ वह जान पड़ता है; पर दिखता नहीं, उसके विषय में प्रतीति आती है; पर उसका भास नहीं होता और वह शरीर में है। पर एक ठौर में नहीं बैठता ॥ ३७ ॥ वह तीक्ष्णता से आकाश में भर जाता है, सरोवर देखते ही पसर जाता है और पदार्थ देखते हुए चारो ओर व्याप्त रहता है ॥ ३८ ॥ जैसा पदार्थ दिख पड़ता है वह वैसा ही हो जाता है और चंचलता में वह वायु से भी अधिक है ॥ ३६॥ वह अनेक दृष्टियों से देखता है, अनेक रसनाओं से चखता है और अनेक मनों से परखता है ॥ ४० ॥ कान में बैठ कर शब्द सुनता है, घ्राणेन्द्रिय से चास लेता है और त्वचा से ठंढ और गर्म इत्यादि जानता है ॥ ४१ ॥ इसी प्रकार वह सब के मन की बातें जानता है, वह सब में है.और सब से निराला है। उसकी अगाध लीला वही जानता