पृष्ठ:दासबोध.pdf/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रीसमर्थ रामदासस्वामी। २७ , है । जयरामस्वामी, रंगनाथस्वामी, आनन्दमूर्ति, केशवस्वामी. मोरयादेव, तुकाराम बाबा, वामनपण्डित, देवीदास, कूर्मदास, दामाजी, बोधले वाचा, नृसिंहसरस्वती, मुक्तेश्वर, विठ्ठल- कवि, अनंतकवि, आनन्दतनय, निरंजनस्वामी, शेख महम्मद, शिवदीन इत्यादि अनेक साधु कवि समर्थ के समकालीन थे । इन सब लोगों के विषय में यदि थोड़ा थोड़ा भी लिखा जाय तो प्रस्तुत लेख बहुत बढ़ जायगा । इसलिए इनमें से प्रथम चार साधु पुरुषों के विषय में कुछ लिख कर यह भाग समाप्त करेंगे। महाराष्ट्र में “ रामदास-पंचायतन " बहुत प्रसिद्ध है। इस पंचायतन में श्रीरामदासस्वामी के साथ जयरामस्वामी, रंगनाथस्वामी, आनन्दमूर्ति और केशवस्वामी शामिल हैं। जयराम- स्वामी के पिता भिकाजीपन्त देशपाँडे कासरावाद में मांडवगण नामक गाँव के निवासी थे। उनकी माता का नाम कृष्णाबाई था । जयरामस्वामी बहुत दिनों तक अपनी माता के साथ पंढरपुर में रहते थे। वहाँ भजन भाव करने पर भगवर्शन होने के बाद वे बड़गांव में कृष्णाजी आपा अभयंकर के पास गये। उनके उपदेश से वे रामदासस्वामी के शिष्य हुए। उन्होंने शान्तिपंचीकरण, सीतास्वयंवर, रुक्मिणीस्वयंवर नाम के ग्रन्थ लिखे हैं । सन् १६७२ में इनकी मृत्यु हुई । रंगनाथस्वामी के पिता का नाम गोपालपन्त और माता का नाम क्या- चाई था। रंगनाथस्वामी के ज्येष्ठ बन्धु ब्रह्मानन्दस्वामी भी प्रसिद्ध साधु पुरुष थे । उनके पुत्र सुप्रसिद्ध श्रीधर कवि ने रामविजय, हरिविजय, पांडवप्रताप, भगवद्गीता, शिवलीलामृत आदि अनेक ग्रन्थ लिखे हैं जो महाराष्ट्र में स्त्री-पुरुप, छोटे बड़े, सव लोग प्रति दिन पढ़ा करते हैं। श्रीरामदासस्वामी के निवदर्शन की अभिलापा करके रंगनाथस्वामी सज्जनगढ़ के समीप ही निगड़ी गाँव में मठ चना कर रहते थे। ये स्वामी बड़े राजयोगी और विलासी थे। हमेशा सरदारी ठाट से रहते थे। सिर पर रेशमी ज़रीदार साफा, कानों में बहुमूल्य मोतियों की वाली, वदन में ज़रीदार अँगरखा, हाथ में भाला, पीट पर ढाल और तीर कमान, वायें पैर में चाँदी का कड़ा धारण किये रहते थे। आप एक क्रीमती घोड़े पर आरूढ़ होकर बाहर निकलते और साथ में पच्चीस-तीस लँगोटिये ब्रह्मचारी शिष्य रहते थे। स्वयं रंगनाथस्वामी भी बालब्रह्मचारी थे। वे पायजामे के भीतर एक लंगोट भी लगाते थे। वृह- द्वाक्यवृत्ति, चित्सदानन्दलहरी और वसिष्ठसार आदि कई उत्तम उत्तम ग्रन्थ उन्होंने लिखे । सन् १६८४ में उन्होंने समाधि ली ! आनन्दमूर्ति रंगनाथस्वामी के शिष्य थे। समर्थ उनको ‘चिरंजीव' कहते थे। सन् १६९६ में वे समाविस्थ हुए। ब्रह्मनाल में उनकी समाधि है। उन्होंने बहुत से फुटकर पद्य रचे हैं । केशवस्वामी हैदरावाद के भागानगर में रहते थे। उनके गुरु का नाम काशिराजस्वामी था । एकादशीचरित्र और कुछ स्फुट अभंग, पद आदि कविता उन्होंने रची है । सन् १६२८ में उनका स्वर्गवास हुआ। रामदास-पंचायतन के उपर्युक्त चारो साधु और उनके समय के अन्य साधु तथा कवि जन श्रीरामदासस्वामी का बहुत सन्मान करते थे। सुप्रसिद्ध महाराष्ट्र-कवि वामन पंडित संस्कृत के बड़े विद्वान् शास्त्री थे। काशी से रामेश्वर. तक अपनी अपूर्व विद्वत्ता स्थापित करके