पृष्ठ:दासबोध.pdf/३८२

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मुष्टिकाम। भिन्न भिक मागायों के अनुसार कुछ कुछ मालूम होते हैं ॥ १३॥ फिर गाना प्रकार को रोनि-रबाज और जननदियां जारी होती है; नाना प्रकार यात्रा कोने हैं और उनके अनुसार सब लोग बर्तने लगते हैं या प्रकृति के छोटे-बड़े शरीर निर्माण होते हैं और फिर अपन छाने मन के अनुसार वर्तने लगते हैं ॥ २॥ नाना मत निर्माण ते, अनेक प्रकार के पाखंड फैलते हैं; और बहुन प्रकार के अनेकों पड़ मचते हैं ॥१६॥ जैसी जनरूढ़ि पड़ जाती है वैसाही लोग बलांच करने लगते हैं। कौन किसको रोक सकता है ? एकता नहीं है !! १७ ॥ सारी पृथ्वी में गड़बड़ मचा हुया है। एक एक बड़ा है-कौन जाने वि. कौन सञ्चा है और कौन झूठा है ॥ १८ ॥ प्राचार बहुत बुरे पड़ गये हैं, कितने ही पेट के लिए हवे मरते हैं, कितने ही अभिमान में नाकर ग्राइस्बर रच रहे हैं ॥ १६॥ अगणित देवता हो गये हैं, उनका गड़बड़ मचा हुआ है, देवी और भूतों का ढोंग भी खूब मचा हुआ है ॥२०॥ मुख्य देव मालम नहीं होता, किसीका किसीसे मेल नहीं ग्वाना. एक की और एक नहीं झुकता । सभी स्वच्छन्द बन रहे हैं ॥२१॥ स प्रकार विचार नष्ट होगया सारासार का विचार कोई नहीं करना ! कहां जा छोटा, कहां का बड़ा-कुछ जान ही नहीं पड़ता ! ॥ २२ ॥ शान्त्रों का बाजार लगने लगा, देवताओं का गड़बड़ मचा हुआ है, लोग लकाम व्रत के लिए मरे जाते हैं ! ॥ २३ ॥ इस प्रकार सब सत्या नाश हो रहा है; सत्य-असत्य का पता नहीं लगता और चारो श्रोर स्वैरता का वर्ताव हो रहा है ! ॥ २४ ॥ मतमतान्तरों का झगड़ा मचा हुआ है, कोई किसीको पूछता ही नहीं; जो जिस मत में पड़ गया है उसको वही बड़ा जान पड़ता है ॥ २५ ॥ असत्य के अभिमान से पतन होता है; इसी लिए ज्ञाता लोग सत्य का खोज करते हैं ॥ २६ ॥ लोग जो कुछ बर्ताव करते हैं वह सब शाता को करतलामलकवत् रहता है। श्रतपत्र, हे विवेकी लोगो! सुनो- ॥ २७ ॥ लोग किस पंथ से जा रहे हैं और किस देवता का भजन करते हैं-सो प्रत्यक्ष अनुभव की बात सावधान होकर सुनोः- ॥ २८ ॥ मिट्टी, पत्थर और अन्य धातुओं की मूर्तियों को देवता मान कर बहुत से लोग उन्हींको पूजने लगे हैं ॥ २६ ॥ कोई अनेक देवताओं के अव- तारों के चरित्र सुनते हैं और सदा उन्हींका जप, ध्यान तथा पूजा किया करते हैं ॥ ३०॥ कोई सब के अंतरात्मा, विश्व में वर्तनेवाले