पृष्ठ:दासबोध.pdf/३८३

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३०२ दासबोध । [ दशक ११ विश्वात्मा, दृष्टा, साक्षी या ज्ञानात्मा को मानते हैं ॥ ३१ ॥ कोई निर्मल और निश्चल है-कभी चंचल होते ही नहीं-और अनन्य भाव से स्वयं केवल वस्तुरूप हो रहे हैं ॥ ३२ ॥ सारांश, इस सृष्टि में कुल चार प्रकार के देवता हैं: प्रथम नाना प्रकार की प्रतिमाएं, दूसरे अवतार, तीसरे अंत- रात्मा और चौथे निर्विकारी-इन्हें छोड़ कर अन्य किसीमें लोगों की भावना नहीं है ॥ ३३ ॥ ३४ ॥ कोई कोई सब एक ही मानते हैं; और परमेश्वर को साक्षी बतलाते हैं। परन्तु जिसके कारण वे परमेश्वर को साक्षी कहते हैं उस अष्टधा प्रकृति को भी पहचानना चाहिए ॥ ३५॥ वास्तव में प्रकृति का साक्षी जो परमेश्वर है वह प्रकृति का ही स्वभाव है। परन्तु उस भावातीत परब्रह्म को विवेक से जानना चाहिए ॥ ३६॥ जो निर्मल का ध्यान करेगा वह निर्मल ही हो जायगा । जो जिसको भजेगा वह उसी रूप में हो जायगा ॥ ३७॥ पानी और दूध को जो अलग अलग करते हैं वे राजहंस कहलाते हैं तथा जो सार-असार जानते हैं वे महानुभाव है ॥ ३८ ॥ अरे ! जो चंचल (माया) का ध्यान करेगा वह स्वाभाविक ही नाश होगा और जो निश्चल (ब्रह्म) का भजन करेगा वह निश्चल ही रहेगा ॥३६॥ प्रकृति के अनुसार चलना चाहिए; परन्तु अन्तःकरण में शाश्वत को पहचानना चाहिए और सत्य स्वरूप होकर साधारण लोगों की तरह बर्ताव करना चाहिए ॥४०॥ तीसरा समास-सांसारिक उपदेश । ॥ श्रीराम ॥ मनुष्य का शरीर बहुत जन्मों के बाद मिलता है; इस लिए, इसको पाकर, नीति-न्याय के साथ सत्य बर्ताव करना चाहिए ॥१॥ प्रपंच (सांसारिक कार्य) नियमपूर्वक करना चाहिए और उसके साथ ही परमार्थ का भी विचार करना चाहिए। इससे इहलोक और परलोक दोनों में सुख होता है ॥२॥ सौ वर्ष की आयु नियत की गई है, जिसमें से बाल्यावस्था अज्ञान में और युवावस्था सम्पूर्ण विषयों में चली जाती है ॥ ३॥ बुढ़ापे में नाना रोग और कर्मभोग भोगने पड़ते हैं । अब भगवान् का भजन किस समय किया जाय ? ॥ ४॥ राजकीय और दैवी उद्वेगं तथा चिन्ताओं में; अन्न-वस्त्र और शरीर-रक्षा में, तथा अन्य इसी प्रकार की अनेक भझटों में, अचानक मृत्यु आ जाती है ॥ ५ ॥ लोग मर