पृष्ठ:दासबोध.pdf/३८७

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३०६ दासबोध। [ दशक ११ चाहिए और असार वमन की तरह छोड़ देना चाहिये ॥ २६ ॥ उल वमन का सेवन करना कुत्ते का स्वभाव है। उसके लिए पवित्र ब्राह्मण क्या करेगा? ॥ २७ ॥ जो जैसा संचित करता है उसको वैसा मिलता है। जो आदत पड़ जाती है वह तो नहीं छूटती ! ॥ २८ ॥ कोई दिव्य पदाएँ। का भोजन करते हैं और कोई विष्टा बटोरते हैं; परन्तु अपने पुरखों की वातें सभी मारते हैं ॥ २६ ॥ अस्तु । विवेक विना जितना कथन है सब व्यर्थ है । श्रवण और भनन सब को बार बार करना चाहिए ॥ ३० ॥ पाँचवाँ समास-राजनैतिक दाव-पेंच । ॥ श्रीराम ॥ कर्म किया हुआ ही करना चाहिए, ध्यान धरा हुआ ही धरना चाहिए और विवरण किये हुए निरूपण का ही फिर से विचरण करना चाहिए ॥१॥ यही बात हमसे हुई है । बोला हुआ ही फिर से बोलना पड़ा है। ऐसा इस लिए करना पड़ा है कि, जिससे निगड़ा हुना समाधान अच्छी तरह स्थापित हो जाय ॥२॥ उपाय का मुख्य अभि- प्राय यह है कि, जिससे समुदाय में अनन्यता रहे और अन्य लोगों को भी उसके विषय में भक्ति उत्पन्न हो ॥३॥ हरिकथा और अध्यात्म-निरू-' पण मुख्य हैं; इसके बाद राजनीति का विषय है और फिर तीसरा काम सब के विपय में सावधान रहना है ॥ ४॥ इसके बाद, अत्यन्त उद्योग करना चौथा कर्तव्य है। अनेक आक्षेपों को दूर करना चाहिए तथा छोटे बड़े अपराधों को भी क्षमा करते रहना चाहिए ॥ ५॥ दूसरे के हृदय की बात जानना चाहिए, सदैव उदासीनता रहनी चाहिए और नीति- न्याय में अन्तर न पड़ने देना चाहिए ॥ ६ ॥ चतुरता से लोगों के मन अपनी ओर आकर्षित कर लेना चाहिए। एक एक करके सब को बोध करना चाहिए और यथाशक्ति 'प्रपंच' को भी सम्हालना चाहिए .. ॥ ७ ॥ 'प्रपंच' का मौका देखना चाहिए, बहुत धैर्य रखना चाहिए।। किसीसे बहुत सम्बन्ध न रखना चाहिए ॥ ८॥ व्यवसाय को व्यापक करना चाहिए; परन्तु उसकी उपाधि में न फँसना चाहिए। नीचता और मूर्खता पहले ही ले अपने सिर ले लेना चाहिए ॥ ६॥ दूसरों के दोष छिपाना चाहिए; सदा किसीके अवगुण न बतलाते रहना चाहिए और दुर्जनों को अपने पंजे में लाकर, उनके साथ भलाई करके, फिर उन्हें छोड़